Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 231
________________ 214 जिनमंदिर में पांच अभिगम का पालन श्री जिनमंदिर में जाने पर पांच अभिगम का पालन करना चाहिए । (1) मंदिर में जाते समय पुष्प, तंबोल, सुपारी, बादामादि, छुरी, कटारी, सरोता, मुकुट, सवारी (वाहनादि), सचित-अचित वस्तुओं का त्याग करना । (2) मुकुट के सिवाय बाकी के आभूषण आदि अचित द्रव्यों का त्याग नहीं करना। (3) एकपट और चौड़े अर्जवाला उत्तरासंग (दुपट्टा-खेस) ग्रहण करना ।(4) श्री जिनेन्द्र प्रभु का दर्शन होते ही मस्तक पर हाथ जोड़कर अंजली 'करके-जिनाय नमः,' कहकर नमस्कार करना । (5) मन में एकाग्रता करना। पूजा विधि 1. श्री जिनमंदिर में प्रवेश करने की विधिश्रावक-श्राविका अपने घर से अथवा सुविधानुसार श्री मंदिर जी के समीप या नीचे बने स्नान घर में स्नान कर पूजा के शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा की सामग्री के साथ निसिही पूर्वक प्रवेश करे । वहां पूजा की सामग्री को थाल में कपड़े से ढक कर पवित्र स्थान पर रख दे और मूलगंभारे के सम्मुख जा कर प्रभु प्रतिमा के दर्शन होते ही अंजलीबद्ध हाथों को मस्तक पर लगा कर और सिर को झुकाकर-"तीन बार 'नमो जिनानं, कह कर प्रभु को नमस्कार करे । पश्चात् मंदिर जी का कोई काम हो तो उस . पर ध्यान देना चाहिए। कहीं कूड़ा-कचरा आदि हो तो उसे भी सावधानी पूर्वक दूर कर दे अथवा करादे। अन्य भी किसी प्रकार की व्यवस्था में कमी मालूम पड़े, तो उसकी भी व्यवस्था कराने का लक्ष्य रखें। (2) पूजा की सामग्री तैयार करने की विधि अपने मुख-नाक पर आठ तह वाला मुखकोश बाँधकर हाथ धोकर मंजे हुए शुद्ध बरतन में पवित्र जल को छानकर लाए हुए से पूजा की सामग्री तैयार करले अथवा पुजारी से करवाले । (1) छने हुए जल में दूध, दही, घी, मिश्री मिलाकर एक कलश में छानकर रख लें (इसको पंचामृत कहते हैं) तथा दूसरे कलश में छना हआ सादा पानी लें और दोनों को कपड़े से ढककर प्रभु को प्रक्षाल करने के लिए रख दें। फिर चन्दनादि घिसने की पत्थर की शिला को तथा उसके नीचे और आस-पास 1. बड़े पूजा विधानों में इन्द्र-इन्द्राणियाँ, छप्पन दिक्कुमारियां बनकर मुकुट, कुंडल, आदि अलंकारों से सुसज्जित होकर श्रावक-श्राविकाओं के लिए मुकुट के त्याग का विधान नहीं है। उन्हें तो इन्द्रों-इन्द्रणियों, देव-देवियों, छप्पन दिक्कूमारियों के समान सुसज्जित वेषभूषा में ही श्री जिनेश्वर प्रभु का महोत्सव करना चाहिए। __मुकट अभिमान का चिन्ह होने के कारण राजा, महाराजा, चक्रवर्तियों को अपने अभिमान का त्याग करके देवाधिदेव श्री तीर्थंकर भगवन्तों की भक्ति के लिये मुकट के त्याग करने का विधान है। न कि इन्द्र इन्द्रानियों के लिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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