Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 225
________________ 208 पीव या रसी झरती हुई होने से द्रव्य शुद्धि न हो तो भी मूलगंभारे (जहां जिन' प्रतिमाएँ विराजमान हों) में प्रवेश नहीं करना चाहिए। जो रजस्वला स्त्रीहो, जब तक उसकी माहवारी बन्द न हो तब तक द्रव्यशुद्धि न होने से उसे भी पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसी हालत में अपनी पूजा सामग्री दूसरे से मंगवाकर और देकर उससे पूजा करवा सकते हैं। सूतक-पातक में भी द्रव्य शुद्धि न होने से स्वयं पूजा न करके अन्य को सामग्री देकर पूजा करवा सकते हैं । क्योंकि शरीर अशुद्ध होने से स्वयं पूजा करने से लाभ के बदले हानि और आशातना होते हैं। 2. वस्त्रशुद्धि ऊपर कही हुई रीति से स्नान करने के पश्चात् उत्तर दिशा की तरफ मुख करके शुद्ध, साफ़, मनोहर बेजोड़, यथासभव सफ़ेद वस्त्र पहनने चाहिये । फटे, मैले कुचैले, जोड़वाले, जले गांठे या दुर्गन्धवाले न हों। लघुनीति (पैशाब) वडीनीति (टट्टी), वाले, खाने-पीने के, मैथुन आदि सेवन वाले, इत्यादि वस्त्र नहीं पहनने चाहियें। (1) पुरुष को बेजोढ़ सफेद दो वस्त्र--एक पहनने का (धोती) दूसरा ओढ़ने का (उत्तरासंग-दुपट्टा) तथा मुखकोष (पूजा करते समय आठ तह करके मुख और नाक पर बांधने का कपड़ा) तथा (2) स्त्री को पेटीकोट, बंडी (कंचुकी), धोती तीन कपड़े तथा मुखकोष पहनने चाहिये । शास्त्र में कहा है कि: "विशुद्धि वपुषः कृत्वा यथायोगं जलादिभिः । घौतवस्त्रैः कसीत द्वै विशुद्धे धूप धुपिते ॥12॥ अर्थात्-जलादि से शरीर शुद्ध करके धोये हुए धूप से सुगंधित किए हुए और पवित्र दो वस्त्र (उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके धारण करना चाहिए । यदि लोक व्यवहार में ऐसा माना हुआ हो कि रेशमी अथवा ऊनी वस्त्र भोजन अथवा मलमूत्र आदि के समय में पहनने से अपवित्र नहीं होते। तथापि यह लोकव्यवहार जिनराज की पूजा में पहनने वाले कपड़ों पर लागू नहीं होता। अन्य कषड़ों के समान ही मलमूत्र अशुचि स्पर्श बर्जने आदि युक्ति से देवपूजा में ऐसे रेशमी ऊनी कपड़े भी अशुद्ध मानने चाहियें । अर्थात् -देवपूजा में पहनने वाले वस्त्र पूजा के सिवाय अन्य किसी भी उपयोग में नहीं लेने चाहियें अन्य अवसरों पर काम में आने वाले वस्त्र भी देवपूजा में कदापि नहीं लेने चाहिये । पूजा करने के पश्चात् पूजा के वस्त्रों को प्रतिदिन धोकर तथा धूपादि से सुगंधित करके सदा साफ रखना चाहिए । पसीना, थूक, खखार आदि उन वस्त्रों से नहीं पूंछना चाहिए। न उन पर गिरना ही चाहिए। उन वस्त्रों को अपने सांसारिक काम के वस्त्रों से भी यथासंभव अलग रखना चाहिए । दूसरे के पहने हुए पूजा के वस्त्र भी धोये बिना नहीं पहनने चाहियें मोक्ष और शान्ति के लिए श्वेतवस्त्र, द्रव्य लाभ के लिए पीले वस्त्र, शत्रु पर विजय के लिए काले वस्त्र, मांगलिक कार्य के लिए लाल वस्त्र पहनने चाहिये । मैला कुचला, फटा हुआ, छिद्र वाला, जला हुआ, जोड़ वाला, गांठा-सांठा वस्त्र जिस वस्त्र का भयानक रंग हो ऐसे वस्त्र दान, पूजा, तप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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