Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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6. पूजा सामग्री शुद्धि पूजा में काम आने वाली वस्तुओं को हम दो भागों में बांट सकते हैं-(1) 'पूजा के उपकरण और (2) पूजा की सामग्री।
____1. पूजा उपकरण-अंगलूहने, पाटलूहने, दीपक, धूपदानी, पूजा की सामग्री रखने, स्नान आदि कराने के बरतन, साफ़-सुथरे होने चाहियें। (1) अंगलूहने (जिन वस्त्रों से प्रभु प्रतिमा का स्नान के बाद शरीर पूंछा जाता है) (2) पाटलूहने (जिन वस्त्रों से प्रभु की वेदी, सिंहासनादि सुखायें पूछे जाते हैं) प्रतिदिन साबुन से धोकर साफ़-सुथरे करके सुखा देने चाहियें। (3) दीपक, धूपदानी, आरती, मंगलदीवा, पानी रखने के बरतन, तशतरियां, केसर रखने की कटोरियां पूजा की सामग्री रखने के बरतन, चंदनादि घिसने की शिलादि जा के सब उपकरण एकदम साफ़-सुथरे और पवित्र होने चाहिये।
___2. पूजा की सामग्री-(1) जल पजा केलिए (पवित्र पानी, दूध, दही, घी; मिश्री)। (2) चंदन प जा के लिये (चंदन, केसर, कपर, अम्बर आदि) । (3) पुष्प सुगंधित ताजे अखण्डित तथा गुंथी हुई पुष्पमालाएं । (4) शुद्ध सुगंधित धूप । (5) शुद्ध घी का दीपक । (6) साफ़-सुथरे अखण्ड चावल। (7) तत्काल के बने हुए ताजे और जिन्हें हिंसक पशुओं-पक्षियों ने संघा खाया स्पर्श न किया हो ऐसे मिष्ठान आदि नैवेद्य (8) मनोहर सुस्वादु मनगमते सचित-अचित फल । (9) पांच अथवा सात दीपकों वाली शुद्ध घी की आरती तथा एक बत्तीवाला शुद्ध घी का मंगलदीपक आदिइस प्रकार की पूजा की द्रव्य सामग्री लेनी चाहिए।
__ स्नानादि करके पूजा के शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा की सब सामग्री थाल में रखकर ऊपर से शुद्ध पवित्र वस्त्र से ढांककर अपने घर से लेकर मन, वचन और काया की शुद्धि पर्वक पूजा करने के लिए मंदिर जी जाने के लिए घर से रवाना होना चाहिए।
7. पूजा विधि शुद्धि श्राविक-श्राविका घर से चलकर जब जिनमंदिर के पहले दरवाजे पर पहुंचे तब शुद्ध जलसे पर धोकर मंदिर जी में प्रवेश करे।
शुभ अध्यवसायों को बढ़ाने वाले दस त्रिक प्रभु के दर्शन पूजा-अर्चा, भक्ति में आराध्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और एकाग्रता, तन्मयता जरूरी है। शुद्ध अध्यवसाय का मन में निर्माण होने से भी एकाग्रता
__ 1. पूजा के लिए स्नानादि घर से करके जाना चाहिए । यदि घर से मंदिर जी दूर हो और रास्ते में स्पर्शापर्श का बचाव असम्भव हो तो स्नान करने की व्यवस्था मंदिर जी के समीप किसी अलग जगह में कर लेनी चाहिए। ऐसा करने से स्पर्शास्पर्श का दोष भी न लगेगा और मंदिर जी में थकादि गिराने की आशातना भी न होगी।
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