Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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(इ) क्योंकि श्री ऋषभदेव की जटाजूट तथा कंधों पर लटकते हुए केशों की मान्यता श्वेताम्बरों की हैं पर दिगम्बर इसे स्वीकार नहीं करते। (देखे चित्र नं06 पृष्ठ 84)
__ (ई) अष्टप्रतिहार्य तीर्थंकर की प्रतिमा में विद्यमान होने से दिगम्बर उसे शृंगार मानकर मानने से इनकार करते हैं तथा श्वेताम्बर जैन इन्हें केवलज्ञानी तीर्थंकर के बारह गुणों में स्वीकार करके पूज्य मानते हैं ।
__ अतः उपर्युक्त नं० 1, 2, 3, 6 वाली तीर्थंकरों की प्रतिमा नग्न होने पर भी जटाजूट वाली, अष्टप्रतिहार्य वाली तथा मुखवस्त्रिका वाले साधुओं के सहित होने से एवं उन प्रतिमाओं पर अंकित लेखों से स्पष्ट है कि ये श्वेताम्बर जैनों की है। दिगम्बर पन्थ की मान्यता का उनसे कोई मेल नहीं है और ये प्रतिमाएं इतनी प्राचीन हैं जब दिगम्बर पन्थ का सद्भाव भी नहीं था।
हम लिख आये हैं कि श्वेताम्बर जैन नग्न और अनग्न, अलंकृत आदि अनेक प्रकार की तीर्थंकर प्रतिमाओं को मानते हैं (देखें चित्र नं० 1 से 8 १० 83, 84) परन्तु दिगम्बर मात्र नग्न प्रतिमाएं ही मानते हैं। उपर्युक्त विवरण में हम नग्न प्रतिमाके विषय में स्पष्टिकरण कर आये हैं । अब श्वेताम्बर जैनों द्वारा अन्य प्रकार की प्रतिमाओं की मान्यता का स्पष्टिकरण करते हैं । . (6) श्वेताम्बर जैन तीर्थंकरों की पांच कल्याणकों वाली प्रतिमा को भी मरते हैं। ये च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान तथा निर्वाण पांचों कल्याणकों वाली एक प्रतिमा भी होती है और एक-एक कल्याणक वाली अलग-अलग प्रतिमाएं भी होती हैं। इन मूर्तियों में (1) च्यवन (गर्भ) कल्याणक के चिह्न रूप गर्भावस्था में इन की माता को आने वाले स्वप्न अंकित होते हैं। (2) जन्म कल्याणक रूप अभिषेक कराने के चिह्न अंकित होते हैं। (3) दीक्षा (तप) कल्याणक रूप मूर्ति के केशलुंचन वाली तीर्थंकर की मूर्ति होती है । (4) केवलज्ञान कल्याणक रूप आठ प्रातिहार्यों के चिह्न अंकित होते हैं और (5) निर्वाण कल्याणक रूप प्रतिमा में तीर्थंकर की ध्यानस्थ शैलीकरण वाली मुद्रा होती है।
(7) तीर्थंकरों की अलंकृत प्रतिमाएं भी श्वेताम्बर जैन मानते हैं । ये मतियां जीवितस्वामि की कही जाती हैं। ऐसी अत्यन्त प्राचीन प्रतिमा भी भूगर्भ से पुरातत्त्व विभाग को मिली हैं। यहां पर ऐसी एक प्राचीन प्रतिमा का परिचय देते हैं ।
श्वेताम्बर जनों के मान्य आवश्यक चणि, निशीथ चूणि, वसुदेव हिंडी एवं कल्प सूत्र टीका आदि में जीवितस्वामी की मूर्ति निर्माण के तथा उसकी पूजा अर्चा के वर्णन पाए जाते हैं। इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-(देखें चित्र नं0 5 पृ० 84)
विद्युन्माखी देव ने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए महाहिमवान नामक पर्वत से उत्तम जाति के चन्दन की गृहस्थावस्था में काउसग्ग ध्यानमुद्रा में स्थित भावसाधु श्री भगवान महावीर की कुंडल मुकुट आदि अलंकारों से अंकित मूर्ति का निर्माण कर
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