Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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सुट्ठिय ( सुस्थित) नामक आचार्य ने जो महावीर के आठवें पट्टप्रभावक थे उन्होंने कोटिक नामक गण स्थापित किया था । उस गण के विभाग रूप चार शाखायें और चार कुल हुए। तीसरी शाखा वयरी थी तथा तीसरा कुल वाणिज नामक था । 1 श्री कल्पसूत्र का मागधी भाषा का पाठ यह है"थेरैहतो णं सुट्ठिय-सुप्पडिबुद्धे हितो कोडिय काकदिएहितो वग्धावच्चस्स गुत्तहितो इत्थ णं कोडिय गणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि सहाओ, चत्तारि कुलाइ एव-माहिज्जेति । से कि तं सहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जंति तं जहा उच्च नागरी 1. विज्जाहरी 2. वयरी 3. य मज्झिमिल्ला य 4. कोडिय गणस्स एसा हवंति चत्तारि साहाओ ॥1॥ से तं साहाओ । से कि तं कुलाई ? कुलाई एवमाहिज्जति । तं जहा- पढमित्थ बंभलिज्जं 1, बिइयं नामेण वित्थलिज्जं तु 2, तइयं पुण वाणिज्जं 3, चउत्पयं ( पहवाहणयं 4; 121 )
( 2 ) बंगलादेश के दिनाजपुर जिलान्तरगत सुरोहोर गांव से जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु की मध्यवर्ति प्रतिमा के साथ उनके चारोतरफ़ घेरे हुए 23अन्य तीर्थंकरों सहित एक पाषाण की चौबीस तीर्थंकरों की प्राचीन प्रतिमा मिली है । यह प्रतिमा भी नग्न है । इसमें श्री ऋषभदेव के सिर पर केशों का जटाजूट है जिसके केश प्रभु के कंधों पर लटक रहे हैं। तथा प्रभामण्डल ( भामण्डल), पुष्पाहारों के साथ इन्द्रों की जोड़ियां, तीन छत्र, विभिन्न प्रकार के बाजे गाजों के साथ प्राप्त हुई है । यह प्रतिमा भी श्वेतांबर जैनों की है ।
यह प्रतिमा वीरेन्द्र अनुसंधान सोसाइटी को प्राप्त हुई है। जो कि ईसा पूर्व काल की है । इस मूर्ति के विषय में बंगाली विद्वान विनोदलाल पाल लिखता है कि यह मूर्ति निर्माण विज्ञान की दृष्टिकोण से बहुत ही चित्तरंजक तथा विशेष ज्ञातव्य है । यह मूर्ति कई हालतों में पालवंश की बैठी हुई बौद्ध मूर्ति से मिलती-जुलती है । सभा-नाथ (मूलनायक श्री ऋषभदेव ) की पूर्णध्यानावस्था में बैठी हुई इर्द-गिर्द घेरे हुए अन्य 23 तीर्थंकरों की मूर्तियां बड़ी अलौकिक प्रतीत होती हैं ।
अब इस प्रतिमा के विषय में भी विचार करें :
(अ) यह सभानाथ की नग्नमूर्ति जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की है श्वेतांबर जैनों के श्री कल्यसूत्र आगम तथा अन्य ग्रन्थों में वर्णन है कि जब श्री ऋषभ देव ने दीक्षा ग्रहण की थी तब उन्होंने चारमुष्टि लोच करके अपने सिर पर पांचवीं
1. मथुरा आदि व्रजदेश के सर्वक्षेत्र में जो जिन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं उन पर इसी प्रकार अनेक गणों, शाखाओं, कुलों के अनुयायी जैनों द्वारा प्रतिष्ठा कराने के उल्लेख हैं । सब लेख श्री कल्पसूत्र की स्थविरावली में आये हुए गणों शाखाओं और कुलों के है | अतः यह सब प्रतिमाएं श्वेतांबर जैनों द्वारा निर्मित, स्थापित, प्रतिष्ठित की है। यहां पर तो उदाहरण रूप लेख रूप है ।
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