Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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भी इस विधि का कथन किया है। अतः यहां जिस विधि का कथन किया है वह समीचीन है, क्रमपूर्वक है, अक्रमिक नहीं है। (व्रत-तिथि-निर्णय दिगम्बर सिंहनन्दी कृत पृ० 231-32 (श्रावण शुक्ला सप्तमी को दिगम्बर पाश्र्वनाथ का निर्वाण मानते हैं)।
3. जिनप्रतिमा की पुष्पमंडित मुकुट तथा पुष्पमाला से पूजा (व्रत कथाकोष में लिखा है) कि
तत् प्रश्नाच्छेष्ठि पुत्रीति प्राह भद्रे शृणु वै । व्रतं ते दुर्लभं येनेहामुत्र प्राप्यते सुखम् ।।1।। शुक्ल श्रावण-मासस्य सप्तमी-दिवसेऽहंताम् । स्नपनं पूजनं कृत्वा भक्त्याष्टविधज्जिनम् ॥2॥ ध्रीयते मुकुटं मूनि कुसुमोत्करः।"
कंठे श्री वृषभस्य पुष्पमालां च ध्रीयते ।।3।। ___ अर्थात-(सेठ की पुत्री के प्रश्न के उत्तर में आर्यिका ने कहा) हे भद्रे घोष्ठि पुत्री ! सुन-मैं तुम्हें व्रत कहती हूं-जिस व्रत के प्रभाव से इसलोक और परलोक में दुर्लभ सुख प्राप्त होता है। श्रावण शुक्ला पक्ष की सप्तमी के दिन श्री अर्हत भगवान की मूर्तियों को भक्ति से स्नान कराकर अष्टद्रव्यों से श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा करो। मुकुट को फूलों से सजाकर श्री जिनेन्द्र ऋषभदेव के मस्तक पर धारण करो और उनके गले में पुष्पमाला पहनाओ। 15. जिनप्रतिमा के चरणों पर कपूर चन्दन पूजा
"कर-चंदनमितीव मयापित सत् ।
त्वत्पाद पंकज-समाश्रयणं करोतीत्यादि ॥" अर्थ-मेरा अर्पण किया हुआ मिश्रित कपूर-चन्दन, हे जिनेन्द्र ! तुम्हारे चरण कमल में सम्यक् आश्रय पाता है। इस काव्य की टीका में लिखा है कि
अनेनवृत्तेन चंदन प्रक्षिप्यते पाद-पंकजे टीप्पका च वीयते । अर्थात--इस वृत (काव्य) को पढ़ कर चंदन क्षेप करें और जिनप्रतिमा के चरणकमलों पर टीपिकाएं (तिलक) करें।
ज्ञानपीठं पांजली में जिनप्रतिमा का स्नान16. जल से अभिषेक पूजा-श्रीमंत भगवन्तं कृपालसंतं बृषभादि महावीरपयंन्त-चतुविंशति तीर्थंकरपरम देव ....."मुन्यायिका-श्रावक-श्राविकाणां सकल कर्मक्षयार्थ जलेनाभिषिञ्च नमः ।
अर्थ-श्रीमान् भगवान् परमदे। कृपालु ऋषभदेव से लेकर श्री महावीर तक चौबीस तीर्थकरों का मुनि-आयिका-श्रावक और श्राविकाओं के समस्त कर्मों का क्षय करने के लिये मैं जल से अभिषेक (स्नान) कराता हैं। ऐसा पढ़ कर जिनप्रतिमा को जल से अभिषेक करावे ।
(ज्ञानपीठ पूजांजली पृ० 20, 21) .. 17. घी से अभिषेक पूजा-(लघु अभिषेक पूजा) ज्ञानपीठ पूजांजली पृ० 20, 211
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