Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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मैं जजत युग-पद अरघसो प्रभु करहुं संकट छीन । (जन्मकल्याणक-मंडिताय अयं नियंपामिति स्वाहा) 3-तप (बीक्षा) कल्याणक पूजा
वदि जेठ द्वादशी जाय वन में केश लुचत धीर , तजि वाह्याभ्यंतर सकल परिग्रह ध्यान धरत गंभीर ।। मैं दास तूम पद ईह पूजत शुद्ध प्रर्ष बनाय, तहें जजत इन्द्रादिक सकल गुण गाय चित्त हरषाय ।।
(तपकल्याणक प्राप्नाय अयं निर्वपामीति स्वाहा) 4-केवलज्ञान कल्याणक पूजा
अम्मावसी वदि चेत की लही ज्ञान केवल सार, करि नाम सार्थक प्रभु अनन्त चतुष्टय लहत अपार । करुणानिधान सुख के भव- उदधि के पोत,
मै जजत तुम पक्ष कमल निर्मल बढ़त आनंद सोत ।। 5-मोक्ष-निर्वाण कल्याणक पूजावदि पचदस कहि चेत की करुणा निधान महान्, सम्मेद पर्वत ते जगत-गुरु होत भये निर्वान । तहं देव चतुर-निकाय विधि करि चरण पूजे सार,
मैं यहां पूजत अर्घ लीन्हे पद-सरोज निहार ।। (मोक्ष कल्याणक मण्डिताय अर्घ्य निर्वपामिति स्वाहा) (31) तीर्थ कर के पाठ प्रतिहार्य-(दिगम्बर शांति पाठ)
केवलज्ञान प्राप्त करने पर देवताओं द्वारा तीर्थकर की भक्ति-पूजा के रूप आठ प्रातिहार्य सदा तीर्थंकर के साथ रहते हैं—यथा- i-दिव्य विटप 2-पहुप्प की वर्षा 3-दुदुभि 4-आसन 5-वाणी 6-तीन छत्र 7-चंवर 8-भामंडल ॥ ये तुव प्रातिहार्य मनहारी ॥ शांति जिनेश शांति सुखदायी । जगत पूज्य पूजो शिरनाई।
अर्थात-1-तीर्थंकर की उपदेश सभा में तीर्थंकर के सिर पर ऊंचा अशोक वृक्ष 2-देवताओं द्वारा पांच वर्ण के सचित फूलों की वृष्टि तीर्थकर के घुटनों तक 3-देवता आकाश में रहकर वाजिन बजाते हैं, इसे देवदुदुभि कहा जाता है, 4आसन तीर्थंकर के प्रवचन मंच पर बैठने के लिए रतन जड़ित स्वर्ण सिंहासन । 5-तीर्थः कर के दायें-बायें देवताओं द्वारा दूलते दो चामर, 6-तीर्थकर के सिर के ऊपर तीन छत्र 7-दिव्य ध्वनि-तीर्थंकर की वाशी के साथ भवति, 8-भामंडल-तीर्थकर के सिरचेहरे के पीछे नोलाकार-प्रकाश मंडल ।'
(32) जिनमंदिर की पुष्पमाला धूपावि-चुरानेवाला अशुभ नाम कर्म का बन्ध करता है -
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