Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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प्रमत्तता से काम-काज आदि करने से हलन चलन तथा चलने-फिरने से अथवा जीव निर्वाह, कुटुम्ब के लिए इत्यादि से होने बाला जीववध |
3. संकल्पी हिंसा भी दो प्रकार की हैं (1) अपराधी जीव की हिंसा ( 2 ) निरापराधी जीव की हिंसा ( 1 ) चोर, डाकू, हत्यारा, किसी की बहू, माता, बहन आदि का अपहरण अथवा उनको चरित्र से भ्रष्ट करनेवाले आदि अपराधी प्राणी का वध ( 2 ) निर्दोष निरापराधी प्राणी का वध ।
निरापराधी की हिंसा भी दो प्रकारकी है - ( 1 ) सापेक्ष, और (2) निरपेक्ष । ( 1 ) सापेक्ष अर्थात् कोई खास आवश्यकता परिस्थितियों में किया जाने वाला प्राणीवध: और ( 2 ) निष्प्रयोजन किये जाने वाला प्राणीवध - यह निरपेक्ष हिंसा है ।
जैन धर्म में अहिंसा आदि को आचरण में लाने वाले अपराध के त्यागियों को श्रेणियों में बाँटा है ( 1 ) सागार ( 2 ) अणगार |
(1) सागार अर्थात् अल्पत्यागी गृहस्थ-स्त्री, पुरुष तथा ( 2 ) अणगार अर्थात् सम्पूर्ण त्यागी साधु साध्वी ।
साधु-साध्वी सम्पूर्ण हिंसा के त्यागी हैं अर्थात् वे लस और स्थावर दोनों प्रकार: के जीवों की हिंसा के सर्वथा त्यागी होते हैं । संकल्प और आरंभ से, अपराधी और निरापराधी, एवं सापेक्ष और निरपेक्ष सब प्रकार की हिंसा का त्याग करके सर्वप्राणातिपात विरमण रूप अहिंसा महाब्रत को धारण करते हैं ।
गृहस्थ-श्रावक-श्राविका के लिए ऐसी सूक्ष्म हिंसा का त्याग असम्भव है । क्योंकि ऐसी सूक्ष्म अहिंसा का पालन करने से उसे अपना, अपने कुटुम्ब परिवार आदि के जीवन को टिका रखना ही असम्भव है । ऐसा होने से न तो वह अपना, न अपने परिवार का, न अपने धर्म, समाज, देश, विश्व का व्यवहार ही चला सकता है और न निर्वाह ही कर सकता है । न खेतीबाड़ी आदि जीवनोपयोगी कार्य कर सकता हैं और न ही राज्यसत्ता आदि का संचालन पालन कर सकता है । अतः वह अहिंसादि व्रतों को बड़े स्थूल रूप से ही स्वीकार कर जहां तक एक तरफ अपने जीवन निर्वाह को सुगम बनाता है । वहां वह सदाचारी बनकर अपने, अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व में चिरस्थाई शांति और व्यवस्था के बनाए रखने के लिए सक्रिय सहयोग भी देता है । इन स्थलव्रतों को ग्रहण करने वाला गृहस्थ होता है । इन स्थूल-व्रतों को शास्त्रीय परिभाषा में देशव्रत कहते हैं। इस का अर्थ है अल्पवत अथवा छोटा व्रत । ऐसे व्रतों को धारण करने वाले पुरुष को श्रावक तथा स्त्री को श्राविका कहते हैं । अथवा सागारी भी कहते हैं ।
गृहस्थ की अहिंसा का स्वरूप
अहिंसा - हिंसा के स्वरूप को "थूल सुहुमा" वाली आगम की गाथा से लिख आये हैं । उसे पूर्ण रूप से स्वीकार करने वाले मनुष्य के अणगार कहते हैं। पुरुष को साधु तथा स्त्री को साध्वी कहते हैं । अणगार पांच महाव्रतधारी तथा रात्री भोजन त्यागी
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