Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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श्री तीर्थंकर देव के चारों निक्षेपों को पूज्य मानने केलिए
जैनागमों के प्रमाण
1. नाम निक्षेप को पूज्य मानने के प्रमाण उववाइ, रायपसेणी, भगवती आदि आगमों में कहा है कि
"श्री अरिहंत भगवान के नाम-गोत्र के सुनने से भी निश्चय महाफल होता है। इस से यह स्पष्ट है कि नाम निक्षेप के जपने से और सुनने से महाफल होता हे । यह सूत्र पाठ-"तं महाफलं खल अरिहंताणं भगवंताणं नाम गोयस्स वि सेवणाए।"
2. स्थापना निक्षेप की पूज्य मानने के प्रमाण इसका विवरण बड़े विस्तार पूर्वक 'विज्जाचारण' मुनियों के नन्दीश्वर द्वीप में शाश्वती जिनप्रतिमाओं को वन्दना करने के लिए जाने वाले प्रसंग में कर आए हैं। जिज्ञासु वहां से जान लें। यहां पिष्टपेषण करना व्यर्थ है।
3. द्रव्य निक्षेप को पूज्य मानने के प्रमाण आगमों में श्री तीर्थकर देवों के च्यवन, जन्म, दीक्षा कल्याणकों में इन्द्रों द्वारा तीर्थकर भगवन्तों की भक्ति के लिये कल्याणक महोत्सव मनाने के लिए अनेक प्रसंगों का वर्णन आया है । इस से स्पष्ट है कि प्रभु का द्रव्य निक्षेप भी पूजनीय है। क्योंकि केवलज्ञान से पहले तीर्थंकर की आत्मा में भाव निक्षेप नहीं होने से द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा से भक्ति है । देखिए तीर्थंकर देवों के चारों निक्षेपों को पूज्य मानने से इनकार करने वाले जिनप्रतिमा के विरोधी संप्रदाय भी साधु के चारों निक्षेपों को मानते हैं । इस का विस्तार से वर्णन हम पहले कर चुके हैं।
4. भाव निक्षेप को पूज्य मानने के प्रमाण केवलज्ञान हो जाने के बाद जब तीर्थंकर प्रभु विद्यमान होते हैं तब उनके आठ प्रातिहार्य समवसरण आदि की इन्द्रों द्वारा रचना एवं तीनोंलोक के प्राणियों द्वारा प्रभु पूजे जाते है । जैन आगमों-शास्त्रों आदि के सुनने पढ़ने वालों से यह बात भी छिपी नहीं है।
__ जिनप्रतिमा विरोधियों का कहना हैं कि-यदि जिनप्रतिमा को देखकर शुभ ध्यान पैदा होता है तो मल्लिनाथ जी की राजकुमारी अवस्था की मूर्ति को देखकर उस के पूर्वजन्म के छह साथी जो इस जन्म में अलग-अलग स्थानों के राजा थे, वे कामातुर क्यों हुए ? इस लिए स्थापना से क्या लाभ ?
समाधान-कालिकाचार्य की बहन सरस्वती नामक साध्वी को रूपवती देख कर गर्द्धभिल्ल राजा कामातुर हो गया और उसे उठाकर अपने अन्तःपुर में डाल लिया जिसके परिणाम स्वरूप कालिकाचार्य ने युद्ध में गर्द्धभिल्ल को हराकर साध्वी को बचाया । रूपवान साधु को देखकर वई स्त्रियां कामातुर हो जाती है तो क्या साधुसाध्वी भी वन्दनीय नहीं हैं ? किंतु जो पुरुष अथवा स्त्री, साध्वी अथवा साधु को देख कर कामातुर हो जाते हैं उनके मनोविकारों का दोष है । सो उन्हें मोहनीय कर्म का
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