Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 203
________________ 186 करके की जाती है। ढेरियां करके की जाती है। 7. नैवेद्य पूजा-नाना प्रकार के 7. नैवेद्य पूजा-प्रतिष्ठित थाली में पकवान प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा के सामने स्वस्तिक के ऊपर गरीगोले के टुकड़ों को चढ़ाकर पूजा की जाती है। तथा दीवाली चढ़ाकर की जाती है। दीवाली की रात की रात को महावीर के निर्वाण के बेसन को बीसपंथ के समान ही बेसन के लड्डू के लड्डू चढ़ाकर भी की जाती है। चढ़ाकर की जाती है। 8. फल पूजा-प्रतिष्ठित जिन 8. फल पूजा-गरीगोले के रंगे हुए प्रतिमा के सामने नाना प्रकार के हरे-सूखे छोटे-टुकड़े स्वस्तिक पर थाली में चढ़ाफल चढ़ाकर की जाती है। कर की जाती है। 9. नृत्य-गीत-स्तुति-स्तवन पूजा- 9. बीसपंथ के समान ही की जाती प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा के सामने नाच-गा है। कर की जाती है। __10. कुंडल मुकट आदि अलंकार 10. एकदम निषेध करके अलंकार पूजा-मूर्ति के मस्तक पर मुकुट को फूलों पूजा नहीं की जाती है । को सजाकर पहनाकर तथा गले में रत्नों फूलों की मालाएं पहनाकर तथा प्रतिमा के मस्तक पर रत्न जड़ित स्वर्ण तिलक लगाकर करने का विधान है । 11. पूजा की समाप्ति के पश्चात् थाली में स्थापित जिनेन्द्र देव की स्थापना का विसर्जन कर दिया जाता है। सारांश यह है उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता हैं कि श्री जिनेन्द्र देव की प्रतिमा की पूजा के श्वेतांवर जैनों तथा दिगंबर बीसपंथियों के प्राचीन विधि-विधान में पूर्णतः समानता है । उसमें प्रायः कोई मतभेद नहीं है । एवं दोनों आम्नायों में पुरुषों के समान ही स्त्रियों को भी जिनप्रतिमा को स्पर्श करने तथा पूजा का भी अधिकार है। यह भी स्पष्ट है कि पूजन के विधि विधानों में न तो हिंसा है और न ही आडम्बर तथा न ही जिनेन्द्र देव में भोग परिग्रह का दोषारोपण की गंध । श्री जिनेश्वर देव की प्रतिमा पूजन में जल, पुष्प, फल, धूप, दीप आदि सचित द्रव्यों को उपयोग में लेने से प्रमाद तथा कषायादि का अभाव एवं आत्मकल्याण कर्मक्षय की भावनाओं के कारण "प्रमत्तयोगात्प्राणव्यप्रोपणं हिंसा" के लक्षण का अभाव है। आंगी-अलंकार आदि की पूजा से जिनेन्द्र देव के परिग्रह के लक्षण रूप मूर्छा परिग्रहअर्थात्-इच्छा-वासना-मोहादि का सर्वथा अभाव है इस लिए भोग और परिग्रह का दोषारोपण करना भी अज्ञता का सूचक है। इसलिये पूजा में हिंसा, परिग्रह आडम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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