Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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वस्त्रादि देकर, उनकी सेवा श्रूषाकर उनको वन्दना नमस्कार कर उनकी भक्ति उपासना कर, उनकी जय बोलकर धर्म मानते हैं।
___ इससे स्पष्ट है कि आपकी भक्ति का कारण साध का जड़ वेश ही मुख्य है। न कि उनके गुण, योग्यता अथवा उनसे उपदेशादि से होने वाले लाभ मुख्य कारण हैं ।
(3) यदि किसी पशु-पक्षी आदि को साध. का वेश दे दिया जावे तो उसे कदापि साधु समझकर वन्दना नहीं करेंगे। कारण यह है कि सब जानते हैं कि पशु-पक्षी के शरीर में रहने वाली आत्मा में साध के गुण प्राप्ति की योग्यता नहीं है और न ही आज तक किसी पशु-पक्षी तिर्यंच को साथ वेश में किसी ने देखा है । इसलिये पशु-पक्षी का भाव निक्षेप शुद्ध न होने के कारण उसका कोई भी निक्षेप अथवा उसपर लादा गया साध का वेश होने पर भी उसे पूजा सत्कार वन्दना आदि के योग्य नहीं माना जाता । इसी प्रकार अभवी दूरभवी तथा मिथ्यादृष्टि मनुष्य साधु वेशधारी का भी भाव निक्षेप शुद्ध न होने से चारों निक्षेप अशुद्ध है इसलिये वन्दना, पूजा, सत्कार आदि के अयोग्य ही हैं।
इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मनुष्य फिर वह चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष हो यदि उसने उनकी मान्यता के अनुकूल जड़ साध वेश पहना हो तभी उसे साधु मानकर वन्दना नमस्कार करने और उनको आहार पानी, निवासस्थान आदि से सेवा भक्ति करने में साधु की भक्ति मानते हैं और ऐसा करने से उन्हें धर्म लाभ की प्राप्ति हुई ऐसा मानते है । चाहे भाव से वह साधु अभवी है, मिथ्यादष्टि है, दूरभवी है अथवा आत्मा में साधु के गुण रहित वेशधारी है इस की न तो कोई कसौटी है और न ही मापदण्ड है। इसलिये मानना पड़ेगा कि साधु वेशधारी मनुष्य के पोद्गलिक शरीर और वेश में साधु की कल्पणा करके ही चलते हैं और उसी कल्पणा के आधार से ही उन्हें साधु मानकर उनकी सेवा वन्दना आदि करते हैं और ऐसा करने से धर्म मानते हैं। तो आप ही बतलाइये कि साधु के चित्र , फ़ोटो, आकृति, स्मृतिस्तम्भ में अथवा आत्मा में साधु के गुणों के अभाव में भी इन सबको भाव साधु मानकर उनकी सेवा, भक्ति, आदर-सत्कार आदि करना स्थापना निक्षेप की पूजा भक्ति नहीं तो और क्या है ? इस प्रकार आपने साधु का स्थापना निक्षेप पूज्य माना और जिनका भाव निक्षेप सर्वथा विद्यमान है। शुद्ध ऐसे तीर्थंकर के स्थापना निक्षेप को पूज्य मानने में आनाकानी क्यों?
(4) साधु के देहांत हो जाने के बाद उसके मुर्दे तथा आत्मा दोनों में साध के गुणों का अभाव होने पर भी उन में साधु के गुणों को मानकर यदि उस मुद्दे का सत्कार किया जाता है सो उस साधु की अतीतकाल की जीवित अवस्था के गुणों को वर्तमान में मानकर करते हो । तो कहना होगा कि (2) साधु के द्रव्य निक्षेप को भी पूज्य मान लिया और यदि ऐसा मानकर उसकी पूजा सत्कार आदि में आप धर्म मानते हैं तो तीर्थंकर प्रभु के द्रव्य निक्षेप की अवहेलना क्यों करते हो? यदि आप द्रव्य निक्षेप को
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