Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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जैसे गुरु की प्रतिमा में गुरु की स्थापना, तीर्थंकर की प्रतिमा में तीर्थंकर की स्थापना ।
(2) इत्वरिका स्थापना-जिस वस्तु में कुछ समय के लिए स्थापना की जाती है, सदा के लिए नहीं, उसे इत्वरिका स्थापना कहते हैं। जैसे सामायिक आदि करते समय चित्र, पुस्तक, जपमाला में गुरु की अथवा पच-परमेष्ठी की स्थापना । धर्म क्रिया समाप्त हो जाने पर उसमें से स्थापना हटा लेना।
ये दोनों स्थापनाएं भी दो-दो प्रकार की हैं-(1) तदाकार, (2) अतदाकार ।
(1) तदाकार अथवा सद्भूतस्थापना-जिस वस्तु का जो आकार है वैसी आकृति में स्थापना करना । जैसे तीर्थंकर, साधु आदि के फ़ोटो-चित्र में तीर्थंकर, साधु आदि की स्थापना करना । अथवा भारत के चित्र को भारत कहना, राजा के चित्र को राजा और माता-पिता के चित्र को माता-पिता कहना ।
(2) अतदाकार अथवा असद्भुत स्थापना-वस्तु का जैसा आकार है उस आकार के अतिरिक्त आकार वाली वस्तु में उसकी स्थापना करना । जैसे पुस्तक, जपमाला, स्थापनाचार्य (अक्ष, लकड़ी आदि) में आचार्य की स्थापना । अथवा तीर्थंकर, साधु आदि की स्थापना करना । अथवा लकड़ी में घोड़े आदि की कल्पना करना । अथवा शतरंज के मोहरों को हाथी घोड़ा आदि कहना, शास्त्रों को ज्ञान कहना। इत्यादि ।
अर्थात्-किसी वस्तु के सदृश अथवा असदृश वस्तु में किसी अन्य वस्तु की स्थापना कर लेना यह स्थापना निक्षेप है। फिर वह सदाकाल के लिये हो अथवा अल्पकाल के लिए हो।
विवाह शादि के प्रसंग पर सुपारी और गुड़ रखकर गणपति-गणेश की स्थापना कर लेते हैं । पूजा और विवाह संस्कार कर लेने के बाद सुपारी और गुड़ में से स्थापना हटा लेते हैं, विसर्जन कर देते हैं । पश्चात् उस सुपारी और गुड़ को खा जाते हैं । तुम कहोगे कि गणेश जी को खा गए ? ऐसा नहीं है, क्योंकि वह स्थापना इत्वरिका थी। स्थापना का विसर्जन कर लेने के बाद गणेश जी की कल्पणा उस वस्तु में नहीं
रहती।
नाम निक्षेप और स्थापना निक्षेप में अन्तर नाम निक्षेप और स्थापना निक्षेप में यह अन्तर है कि-नाम निक्षेप में पूज्यअपूज्य का व्यवहार नहीं होता और स्थापना निक्षेप में यह व्यवहार होता है । नाम निक्षेप में केवल उस व्यक्ति का नाम ज्ञात होता है और उसकी स्थापना में उस वस्तु का बोध होता है। दोनों निक्षेपों में यह अन्तर है। आकृति को देखकर आकृति वाले का ज्ञान होता है। जैसे धनुर्धारी राम की मूर्ति को देखकर राम को बोध होता है ।
(3) द्रव्य निक्षेपभूत और भविष्यत् पर्याय की मुख्यता को लेकर उसे वर्तमान में कहना-जानना सो द्रव्य निक्षेप है। जो भाव निक्षेप का पूर्वरूप या उत्तररूप हो अर्थात् जो उसकी
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