Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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161 सातवां प्रकाश
निक्षेप क्या साधु के वेश में सब साधु हैं ? साधु सामने आता है अथवा साधु के दर्शन करने को जाते हैं। उसके चरणों को स्पर्श कर चरण धूली को बड़ी श्रद्धा, भक्ति और आदर के साथ मस्तक पर चढ़ाते हैं
और ऐसा करके अपने को कृतकृत्य मानते हैं। किन्तु उस साधु के वेश में तथा उसके शरीर में विद्यमान आत्मा में साधु के गुण हैं अथवा नहीं ? उसमें भाव से छठा-सातवां आदि गुणस्थान भी हैं या नहीं, इसका आप को क्या निश्चय है ? आत्मा प्ररूपी है, इन्द्रियों और मन द्वारा अरूपी का दर्शन असम्भव है, क्योंकि इन्द्रियों और मन की मरूपी वस्तुओं को देखने-जानने की क्षमता नहीं है । एक चोर, पतित, व्यभिचारी, चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति भी साधु के वेश में आपके सामने आना संभव है। आप उसके धारण किये हुए वेश को देखते ही बड़ी श्रद्धा और भक्ति से उसके चरणों में सिर झुका देते हैं, उसके चरणों की धुली को अपने सिर आंखों पर चढ़ाते हैं और उसे निवास के लिए स्थान तथा आहार पानी देकर अपने को कृतपुण्य मानते हैं।
इस विषय को विशेष रूप से समझने के लिए हम साधु के चार भांगों से विचार करेंगे-(1) साधु का देश है भाव से साधु नहीं। (2) साधु का वेश भी नहीं है भाव से भी साधु नहीं है । (3) साधु का वेश नहीं है भाव से साधु है । (4) साधु का वेश भी है और भाव से भी साधु है।
1. साधु वेश तो है भाव से साधु नहीं है
(अ) साधु का वेश है पर उसमें साधु के गुण नहीं हैं वह दिखावे के लिए प्रतिक्रमण आदि साधु योग्य धर्मानुष्ठान भी नित्य बहुत उत्तम रीति से करता है। तोते की तरह रटा हुआ बड़ा प्रभावोत्पादक प्रवचन भी करता हैं । छटादार भाषणों से समा बांध देता है। बड़े प्रभावोत्पादक लेखों से, ग्रंथ रचना से जनता पर अपना सिक्का भी जमा देता है। उसको मानने वाले मानव समूह की भी कमी नहीं है।
(आ) एक व्यक्ति उत्तम वैराग्य भावना से साधु दीक्षा लेता है। कुछ समय के बाद उसके भाव पलट जाते हैं।मन-ही-मन में वह साधु वेश को छोड़कर भाग निकलने के उपायों की तलाश में लगा रहता है । परन्तु प्रत्यक्ष में उसके मनोगत भावों को कोई भांप जावे इसकी वह पूरी सावधानी रखता है । साधु के बाह्याचार का आचरण भी बड़ी तत्परता से करता है। ऐसी अधेड़बुन में उसे कई महीने बीत जाते हैं, मौके की ताक में रहते हुए भी उसे भाग निकलने का अवसर प्राप्त करने की सुविधा नहीं मिल पाती । मौका पाते ही वह भाग निकलता है । इसमें संदेह नहीं कि वेश छोड़ने से पहले उसकी आत्मा से साधु अवस्था कई मास पहले ही पलायन कर चुकी थी, ऐसी अवस्था
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