Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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हो जाने से कदाचित् भूल-चूक से कुछ क्रिया दोष लग भी जावे तो उस की शुद्धि के 'लिए भावपूजा, चैत्यवन्दन आदि करने से पहले ईर्यावहीय पूर्वक एक लोगस्स (25 श्वासोच्छवास) का का उसग्म करके पारकर प्रगट लोगस्स का पाठ करके उस अतिचार की आलोचना करके शुद्ध कर ली जाती है।
जिनप्रतिमा पूजन की आज्ञा, पूजन के विधिविधान आदि मूलागमों नियुक्ति, चूणि, भाष्य तथा टीकाओं में विद्यमान होने से तीर्थंकर देवों, गणधरों श्रुतकेवलियों, पूर्वाचार्यों, गीतार्थ-आगमवेत्ताओं सब की एक मान्यता होने से जिन प्रतिमा पूजन से श्री तीर्थंकर प्रभु की आज्ञा का पालन करने का भव्यजीवों को सौभाग्य प्राप्त होता है । श्री जितेन्द्र प्रभु की आज्ञा के पालन में ही धर्म है ऐसा आगम वाक्य है।
जिन प्रतिमा पूजन में कोई दोष नहीं है इसके लिए कुछ विशेष रूप से विचार करते हैं ताकि वस्तुस्थिति समझने में सरलता हो। ___ महानिशीथ सूत्र में कहा है कि:
“जत्थ इत्यिकर-फरिसं, करंति अणिहा विकरणे जाए।
तं निच्छयओ गोयम ! जाणिज्जा मूल-गुणं-हणं ॥1॥" अर्थात्-हे गौतम । राग बिना भी किसी कारण से यदि (मुनि) स्त्री को हाथ का स्पर्श करे तो उसे निश्चय से पांच मूल गुण रहित जानो।
___ तथा साधु केलिए सचित जल का उपयोग, अग्नि का समारंभ विषयसेवन ये तीनों उत्कृष्ट रूप से निषेध किए हैं। इन तीनों में उत्सर्ग-अपवाद स्थापना नहीं घटती।
ठाणांग सूत्र में साधु को पांच कारणों से साध्वी को छूने-पकड़ने का वर्णन है। इसमें नदी में बहती हुई साध्वी को साधु निकाल लावे । ऐसा भी कहा है।
(1) यदि कोई साध्वी नदी तालाब आदि में डूब रही हो और कोई पांच महाव्रतधारी साधु उस जलाशय के किनारे पर उपस्थित हो, वह तैरना जानता हो तो क्या वह तमाशबीन होकर किनारे पर खड़ा देखता रहेगा और साध्वी को डूबने देगा? प्रभु ऐसे कृत्य को अधर्म कहते हैं। ऐसा करने से पांच महाव्रतधारिणी आर्या का प्राणांत हो जाएगा। ऐसी परिस्थिति में साधु नदी में कूदकर जैसे बने वैसे साध्वी को पकड़कर निकाल लावे। उस समय साधु का यह मुख्य कर्तव्य है और वह धर्म का आराधक है, विराधक नहीं। इस कार्य को करने में जो उसे क्रिया लगी उसको आलोचना के लिए ईविहीय पूर्वक (25 श्वासोश्वास) का काउसग्ग करके प्रगट लोगस्स का उच्चारण करलें । बस हो गई शुद्धि ।
अब यहाँ पर जरा विचार करिये कि कहाँ तो सचित पानी के स्पर्श तथा स्त्री मात्र के स्पर्श से साधु के पाँच मूलगणों का अभाव बतलाया है और कहां सचित जल से भरपूर जलाशय में प्रवेश कर स्त्री साध्वी को पकड़कर साधु बाहर निकाल लावे
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