Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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धारां घृतस्थ शुभ-गंध-गुणानुमेयां । sai सुरभि स्नपनोपयुक्त्ताम् ॥13॥
अर्थ – जो अपने सुगंध गुण के द्वारा अनुमेय है ऐसी अहंतों (तीर्थंकरदेवों) के अभिषेक के योग्य मैं घृतधारा को नमस्कार करता हूं । ओम् हृीं श्रीमंत भगवंत इत्यादि मंत्र को पढ़ कर जिनप्रतिमा को घी से अभिषेक ( स्नान ) करावें ।
18. दूध से अभिषेक पूजा - ( लघु अभिषेक पाठ पृ० 20, 21 ) । क्षीरैजिना: शुचितरैरभिषिच्यमानाः । संपादयन्तु मम चित्त- समीहितानि ॥14॥
( उपर्युक्तं मंत्र' पठित्वा जलेनाभिसिचे इत्यादि) अर्थ- शुचितर ( अतिपवित्र) विविध प्रकार के दूध से अभिषेक किये गये जिनेन्द्रदेव मेरे चित्त के सभी हितों को संपादित करें। (उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिन प्रतिमा को दूध से अभिषेक करें ।
19. वही से अभिषेक पूजा . ( ज्ञानपीठ पूजांजली पू० 22, 23 ) । asaiगता जिनपतेः प्रतिमां सुधारा ।
संपद्यतां सपदि वांछित - सिद्धये नः ।। 151
अर्थात - जिनप्रतिमा पर छोड़ी गयी दही की धारा हम लोगों की वांछित सिद्धि को तत्काल संपादित करे ।
( उपर्युक्त मंत्र पढ़कर, जिनप्रतिमा का दही से अभिषेक करें ) ।
20. इक्षुरस गन्ने के रस ) से अभिषेक पूजा (१० 22, 23 ) । तत्काल- पीलित- महेक्ष - रसस्य धारा ।
सद्यः पुनातु जिन-बिब- गतैव युष्मान् ।।16।।
अर्थात् - - तत्काल पेलकर निकले हुए इक्षुरस की जिनप्रतिमा पर छोड़ी गई धारा तुम लोगों को सद्यः पवित्र करे । ( उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिनप्रतिमा का इक्षुरस से प्रक्षाल करे ) ।
पूजा
21. सर्वोषधियों से सुगंधित जल से अभिषेक संस्नापितस्य घृत दुग्ध-दधीक्षुवा है: । सर्वाभिरौषधिभिरर्हत उज्ज्वलाभिः । उद्वर्तितस्य विदधाम्यभिषेकमेलाकालेय--कुंकुम - रसोत्कट - वारि- पूरैः ।।17।।
अर्थ - घी, दूध, दही और इक्षुरस से जिनप्रतिमा को स्नान (अभिषक ) करने के बाद, उबटन लगा कर अब मैं एला, कालेय और कुकुम आदि सर्व औषधियों से मिश्रित उज्ज्वल जल से जिनदेव की प्रतिमा को स्नान कराता हूं । ( उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिनप्रतिमा का सर्वोषधियों से मिश्रित सुगंधित जल से स्नान करें) |
22. इसी प्रकार कर्पूर, चंदन, केशर आदि सुगंधित जल से जिनप्रतिम को स्नान करावें ।
23. तत्पश्चात् निर्मल सादे स्वच्छ जल से जिनप्रतिमा को स्नान करें ।
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