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________________ 98 धारां घृतस्थ शुभ-गंध-गुणानुमेयां । sai सुरभि स्नपनोपयुक्त्ताम् ॥13॥ अर्थ – जो अपने सुगंध गुण के द्वारा अनुमेय है ऐसी अहंतों (तीर्थंकरदेवों) के अभिषेक के योग्य मैं घृतधारा को नमस्कार करता हूं । ओम् हृीं श्रीमंत भगवंत इत्यादि मंत्र को पढ़ कर जिनप्रतिमा को घी से अभिषेक ( स्नान ) करावें । 18. दूध से अभिषेक पूजा - ( लघु अभिषेक पाठ पृ० 20, 21 ) । क्षीरैजिना: शुचितरैरभिषिच्यमानाः । संपादयन्तु मम चित्त- समीहितानि ॥14॥ ( उपर्युक्तं मंत्र' पठित्वा जलेनाभिसिचे इत्यादि) अर्थ- शुचितर ( अतिपवित्र) विविध प्रकार के दूध से अभिषेक किये गये जिनेन्द्रदेव मेरे चित्त के सभी हितों को संपादित करें। (उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिन प्रतिमा को दूध से अभिषेक करें । 19. वही से अभिषेक पूजा . ( ज्ञानपीठ पूजांजली पू० 22, 23 ) । asaiगता जिनपतेः प्रतिमां सुधारा । संपद्यतां सपदि वांछित - सिद्धये नः ।। 151 अर्थात - जिनप्रतिमा पर छोड़ी गयी दही की धारा हम लोगों की वांछित सिद्धि को तत्काल संपादित करे । ( उपर्युक्त मंत्र पढ़कर, जिनप्रतिमा का दही से अभिषेक करें ) । 20. इक्षुरस गन्ने के रस ) से अभिषेक पूजा (१० 22, 23 ) । तत्काल- पीलित- महेक्ष - रसस्य धारा । सद्यः पुनातु जिन-बिब- गतैव युष्मान् ।।16।। अर्थात् - - तत्काल पेलकर निकले हुए इक्षुरस की जिनप्रतिमा पर छोड़ी गई धारा तुम लोगों को सद्यः पवित्र करे । ( उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिनप्रतिमा का इक्षुरस से प्रक्षाल करे ) । पूजा 21. सर्वोषधियों से सुगंधित जल से अभिषेक संस्नापितस्य घृत दुग्ध-दधीक्षुवा है: । सर्वाभिरौषधिभिरर्हत उज्ज्वलाभिः । उद्वर्तितस्य विदधाम्यभिषेकमेलाकालेय--कुंकुम - रसोत्कट - वारि- पूरैः ।।17।। अर्थ - घी, दूध, दही और इक्षुरस से जिनप्रतिमा को स्नान (अभिषक ) करने के बाद, उबटन लगा कर अब मैं एला, कालेय और कुकुम आदि सर्व औषधियों से मिश्रित उज्ज्वल जल से जिनदेव की प्रतिमा को स्नान कराता हूं । ( उपर्युक्त मंत्र पढ़ कर जिनप्रतिमा का सर्वोषधियों से मिश्रित सुगंधित जल से स्नान करें) | 22. इसी प्रकार कर्पूर, चंदन, केशर आदि सुगंधित जल से जिनप्रतिम को स्नान करावें । 23. तत्पश्चात् निर्मल सादे स्वच्छ जल से जिनप्रतिमा को स्नान करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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