Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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10 (प्रा) स्त्री द्वारा जिनप्रतिमा की पूजा करने का विधानषट्कर्मोपदेशमाला में लिखा है कि
इतीवं निश्चियं कृत्वा दिनानां सप्तकं सती। श्री जिनबिबानां स्नपनं समकार्यत ।। 1।। चन्दनागुरु-कपूर-सुगन्धेश्च विलेपनं ।
सा राज्ञी विदधे प्रीत्या जिनेन्द्राणां त्रिसंध्यकम् ।।2।। अर्थात्--यह निश्चय करके रानी श्री जिनप्रतिमाओं को सात दिनों तक अभिषेक (स्नान) कराती रही और प्रीति से त्रिसंध्या (प्रातः, दोपहर, संध्या) में जिनेन्द्रदेव (जिनप्रतिमा) की चन्दन, अगर, कर्पूर आदि सुगंधी द्रव्यों से विलेपन करती रही। 28-जिनप्रतिमा की दोपक से पूजा
___"दीवं दइ विणई जिणवरहं मोहांतराइ दोइ गट्ठाई। अर्थात्-जो जिनेश्वरदेव की दीपक से पूजा करता है उस के मोह और अन्तराय दोनों कर्म नष्ट हो जाते हैं ।
29----जिनप्रतिमा के सामने नाटक तथा अष्टद्रव्यों से पूजा विषपूजाप्रकरण में लिखा है कि(अ) नाटक से भक्ति पूजा
"एवं काऊण रमो खुहियं समुद्दोरव गज्जमाणेहि । वर-भेरी करड काहल जय घटा संखाणि बहेहि ।।1।। गुलगुलंति ति-वेलेंहि कस-साहि झमझमंतेहि।"
मंत-फउह-महल-हुडक-मुखेहि विविहेहिं ।।2।।" प्रर्थात्-इस प्रकार के शब्द करके-कैसे हैं वे शब्द ? क्षोभ को प्राप्त हुए समुद्र के गरजारव के समान श्रेष्ठ, भेरी, करद, काहल जय घंटा, शंखादि बाजों के समूह के शब्दों से गुलगुल शब्द हो रहे हैं। तथा तिविल, कांसी, ताल, मंजीर आदि बाजों से झम झम शब्द हो रहे हैं । एवं पटह, ढोल, मृदंग आदि वाजित्रों के शब्दों से एक धुन मच रही है । इस प्रकार से नाटक पूजा करें।
(मा) चंदन पुष्पादि से पूजा
"चिठेज्ज जिणगणारोवणं कुणतो जिणंद-पडिबि । इट्ठविलग्ग सुद एह चंदनतिलयं तमो विजह ॥1॥ सवावयवेसु पुणो मंतण्णासं कुणिज्ज पडिमाए ।
विविहच्चणं च कुज्जा कुसुमेहिं बहुप्पयारेहिं ॥2॥
अर्थात्-जिनप्रतिमा में गुणों की स्थापना करता हुआ बैठे और इष्टलग्न में जिनप्रतिमा को चदन से तिलक करे। जिनप्रतिमा के सर्वागों में मंत्रन्यास करे। फिर बहुत प्रकार के पुष्पों आदि से अनेक प्रकार से पूजा करे । (चंदन-पुष्पादि से पूजा) (इ) जिनप्रतिमा को विविष द्रव्यों से पूजा
"बलिबत्तिएहि जवारेहि च सिद्धत्य पण्णरक्खेहि । पुज्यतुवयरयणेहि य रइज्ज पूयं सुविहर्णण ॥1॥
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