Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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24. जिन प्रतिमा की जलधारा से अध्यं पूजा
गहिउणं सिसिरकर-किरण-णियर-घवलरयण-भिंगारं। मोति-पवाल-मरगय-सुवपण-मणि-खचिय-वर-कंठ ।।1।। सुय-वृत्त-कुसुम-कुवलय-रज-पिंजर-सुरहि-बिमल-जल-भरियं ।
जिण-चलण-कमल-प रखो खेविज्ज्उ तिण्ण धाराओं ॥ 21 अर्थात-चंद्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल रत्नों से जडी हइ झारी को लेकर-वह झारी कैसी है ? मोतियों, मंगों, सोना, मनियों आदि से जड़ा हआ है कंठ जिसका और शास्त्रोक्त पुष्पों, कमलादि की रज से पीत एव सुगधित निर्मल जल भरा है जिसमें, ऐसी झारी के जल से जिन प्रतिमा के आगे तीन धाराएं दें।।
25. जिनप्रतिमा को नित्य स्नान से पूजा न करने से हानि-भगवद्देवसंधि विरचित श्रावकाचार में लिखा है कि
"नित्य पूजा-विधाने तु त्रिजगत्स्वामिनः प्रभोः । कलशैऽने केनापि स्नानं न विग्रहयते ।।।।
विदध्यात्कलह नित्यादि ।" अर्थात -- नित्य पूजा विधान में जो व्यक्ति तीनजगत के स्वामी प्रम की एक कलश से भी पूजा नहीं करता उसे कलह, कुल का नाश आदि प्राप्त होते हैं। 26. जिनप्रतिमा की फलों से प जा---
जम्बीर-नारंग-सुपक्व-जम्बू-फलोत्तमाचं रसमुदिगराद्भिः। व्रतानि सत्य-प्रभृतीनि हर्षात् गुप्तीयजामः समितीश्च पंच॥ ओम् ही अहिंसा महाव्रतादि कांगेभ्यः फलं निर्वपाविमि स्वाहा ।
(ज्ञानपीठ पू जांजलि प.० 292-93) अर्थ-जम्बीर (बिजोरा) नारंगी, पके हुए जामन आदि रसीले उत्तम फलों से सत्य आदि पांच महाव्रतों, तीन गुप्तियों, और पांच समितियों की मैं प जा करते हैं।
[ओम् ही अहिंसा महाव्रत आदि के लिये मैं प्रभु के चरणों में फल अर्पित करता हूं] ।
27. स्त्री द्वारा जिनप्रतिमा की अष्टप्रकारी पूजा का विधान(अ) श्रीपाल चरित्र में लिखा है कि--
"तत्राष्टकपर्यतं प्रपू जय निरंतरं । पजाद्रव्यजगत्सारष्टभदै जलादिकः ॥1॥ तच्चदन सुगन्ध्यंबुस्रजो व्याधिहरा: स्फुटम ।
प्रत्यहं त्वपतेर्भक्त्या प्रयच्छ रोगहानये ॥२॥
अर्थात-(मयनासुन्दरी को महामुनि ने कहा कि श्री सिद्धचक्र का) आठ दिनों तक जगत में सारभूत, ऐसे जल, चंदन, केसर आदि आठ प्रकार (जल. चंदन, फल, अक्षत, धूप, दीपक, नैवेद्य, फल) के द्रव्यों से पूजा करके तरन्त व्याधि को हटाने वाले श्री सिद्धचक्र को स्पर्श किये हुए जल, चंदन, सुगंधी पुष्पमाला आदि को अपने पति (श्रीपाल के शरीर) को लगा। जिससे उसका रोग दूर हो जावे।
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