Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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(1) चैत्य शब्द का अर्थ कोषकारों की दृष्टि में
1. कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र जी ने अपने अभिधान चिन्तामणि कोष तथा हेमीनाममाला में चैत्य शब्द का अर्थ-तीर्थ कर भगवान की मूर्ति, जिनप्रतिमा और मन्दिर किये हैं। यथा
"चैत्य नपुसक लिंग)--जिनबिंब, जिनोकः, जिनालयः अर्थात् - चैत्य शब्द नपुंसक लिंग है । इसका अर्थ-जिनेश्वर प्रभु की मूर्ति, जिनेश्वर का घरजिनमन्दिर होत है।
चैत्य (पल्लिग)- चैत्य तरुः । अर्थात-जिस वृक्ष के नीचे तीर्थकर उपदेश देते है अथवा केवलज्ञान प्राप्त करते हैं उसे चैत्यतरु (चैत्यवृक्ष) कहते हैं ।
अतः यहाँ पर चैत्य शब्द का अर्थ जिनमन्दिर, जिनप्रतिमा सिद्धायतन मानना ही सही है।
__ 1. शब्द कोष सम्मत, 2. गीतार्थ पूर्वांचायों द्वारा सम्मत, 3. आगम शास्त्र सम्मत, 4. तर्क सम्मत, 5. युक्तिपुस्पर, ०, तथा इतिहास-पुरातत्त्व सम्मत सब दृष्टियों से यही अर्थ सही है इस उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट सिद्ध हो जाता है।
तथा अत्यन्त प्राचीन काल से जिनप्रतिमाएं जिनमन्दिर, सिद्धायतन, स्तूप जिन-गुफाएं विद्यमान होने से "चैत्य" शब्द के उपयुक्त अर्थ की प्रत्यक्ष प्रमाण से भी पुष्टि होती है।
9- प्रागमों में जिनप्रतिमा के पूजने को चर्चा आक्षेप- जैन आगमों में मर्ति को पूज्य मानने और उसकी पूजा का कोई उल्लेख नहीं है। चैत्यवासियों (यतियों) ने अपनी उदरपूर्ति का साधन बनाने के लिए मूर्ति की मान्यता तथा उसकी आडम्बरमय पूजाओं को प्रचलन किया है।
समाधान -मल जैनागमों, उनपर नियुक्ति, भाष्य, चर्णि, टीकामों में तथा पूर्वीचार्य गीतार्थ महर्षियों द्वारा रचित शास्त्रसमूह में ठोर-ठोर पर मूर्तिपूजा के उल्लेख विद्यमान हैं । यथा
1. श्री आचारांग सूत्र (प्रथमांग) में प्रभु महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ को श्री पाश्वनाथ संतानीय जैन श्रावक कहा है। उस में वर्णन है कि उसने श्री जिनेश्वरदेव की पूजा केलिये लाखों रुपये खर्च किये और अनेक जिन प्रतिमाओं की पूजा की। इस अधिकार में "प्रायन" शब्द आया है । जिसका अर्थ देव. पूजा है।
2. श्री सूयगडांग सूत्र की नियुक्ति मैं श्री जिनप्रतिमा को देखकर प्रार्द्रकुमार को प्रतिबोध हुआ और जब तक उसने दीक्षा ग्रहण नहीं की तब तक वह प्रतिदिन उस प्रतिमा की पूजा करता रहा ।
3. श्री समवायांग सूत्र में समवसरण के अधिकार के लिये कल्पसूत्र का उदाहरण दिया है। इसी प्रकार श्री बृहत्कल्पसूत्र के भाष्य में वर्णन है कि
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