Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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74 देंवच्छंदक है और जहाँ जिनप्रतिमाएँ है, उस प्रदेश में जाता है, जाकर प्रतिमाओं को देखकर प्रणाम करता है, प्रणाम करके लोमहस्तक (मोरपिच्छी) हाथ में लेकर जिनप्रतिमाओं का उससे प्रमार्जन करता है । प्रमार्जन करके जिनप्रतिमाओं को सुगन्धोदक से स्नान कराता है । स्नान कराकर सुगन्धित काषायी (वस्त्रों) से मुतियों को पोंछता है । पोंछकर सरस गोशीर्ष चन्दन से उनके गात्रों पर विलेपन करता है। विलेपन करके देव-दूष्य वस्त्र-युगल पहिनाता है। पहिनाकर पुष्प चढ़ाता है, माला 'यहनाता है, गन्ध चढ़ाता है, सुगन्ध चूर्ण चढ़ाता है और वर्णक चढ़ाता है, आभूषण चढ़ाता है। चढ़ाकर चारों तरफ लम्बी-लम्बी पुष्प-मालाएँ लटकाता है। पुष्पमालाओं को लटकाकर छूटे पचवर्ण फुलों को हाथों में लेकर सर्वत्र बखेरता है। इस प्रकार पुष्पों के पुज से सिद्धायतन को सुशोभित करके, जिनप्रतिभाओं के आगे स्वच्छ-रजतमय अक्षतों से आठ-आठ मगलों (अष्टमंगलों) का आलेखन करता है। जैसे स्वस्तिक यावत् दर्पण। उसके बाद चन्द्रप्रभरत्न, हीरे, वैडूर्य रत्नों से जिस का दंड उज्ज्वल है ऐसा स्वर्ण मणि रत्नों की रचना से मंडित, कृष्णऽगुरु श्रेष्ठ कुन्दरूप तुरुष्क धपों से मघमघन्त, उत्तम गंध से युक्त धूपबत्ती से सुगंधी को फैलाता है । ऐसे वैडूर्यरल वाली धूपधानी को लेकर प्रयत्न पूर्वक जिनवरों को धूप खेवकर 108 विशुद्ध रचनावाले अर्थ युक्त महावृत्तों से उनकी स्तुति करता है। स्तुति करके सात आठ कदम पीछे हटता है। पीछे हट कर बायें जाणु (घुटने) को ऊंचे उठाकर दाहिने जाणु को भूमितल पर लगा कर पृथ्वी पर मस्तक लगाता है । फिर मस्तक को कुछ ऊंचा उठाकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अजलीकर इस प्रकार बोला--"नमस्कार हो अरिहंत भगवतों को यावत् सिद्धि गति को प्राप्त होने वालों को (पूरे शक्रस्तव से) इत्यादि वन्दन नमस्कार करके जहाँ देवछंदक है, जहां “सिद्धायतन का मध्य भाग है वहां जाता है और वहां जाकर इत्यादि ।
इस प्रकार सूरियाभ देव ने सिद्धायतन (जिनमंदिर में जाकर जिनप्रतिमाओं (तीर्थकर भगवन्तों की मूर्तियों) की सुगंधित जल, चन्दन, केशर, गंध तथा पुष्षों, पुष्पमालाओं, धूपबत्तियों, अक्षतों, वस्त्र युगल, आभूषणों, अष्टमंगलों, स्तुतियों इत्यादि से सत्रहभेदी पूजा की।
वैसे ही राजकुमारी द्रोपदी देवी ने भी अपने विवाह वाले दिन शादी होने से पहले जिनमंदिर में जाकर जिनमूर्तियों की पूजा की।
-सभ्यग्दष्टि आनन्द श्रावक द्वारा जिनप्रतिमा को वदन नमस्कार
श्रमण भगवान महावीर के दस मुख्य श्रावकों के उपासकदशांग सूत्र में चरित्र वर्णन हैं। उनमें पहला चारित्र आनन्द श्रावक का है उसने भी जिनप्रतिमा की पूजा भक्ति की देखिये
नोखलु मे भंते कप्पइ अज्जप्पभइओ, अण्णउत्थिए वा. अण्ण उत्थिय-देवाणि वा, अण्णउस्थिय परिग्गहियाणिइ वा, अरिहंत चेदयाई वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा
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