Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
View full book text
________________
92 करते हुए पूजा में द्रव्यों का उपयोग करके अपने आप में ऐसी अवस्था प्राप्त करने केलिये सदा जागरूक रहना चाहिये । (11) तीर्थ कर प्रतिमा को पुष्पादि पूजा पर आक्षेप करने
.. वाले को प्रायश्चित कुछ लोग प्रभु की पुष्प, फल, फूलमाला, अलंकारों आदि से आंगी पूजा करने से हिंसा तथा प्रभु को परिग्रहधारी मान कर इस का निषेध करते और विरोध भी करते हैं। वास्तव में ऐसा मानना उनकी अज्ञानता का सूचक है। इसका समाधान हम आगे करेंगे। यहां पर ऐसी पूजा पर आक्षेप करने वालों को प्रायश्चित का भागी बनना पड़ता है । इस केलिये जनागम जीतकल्प भाष्य का मत कहते हैं।
"तित्थगर-पवयणसुतं, आयरियं गणहरं महइड्ढीयं । प्रासायंतो बहुसो अभिणिवेसेण पारांचित पायच्छित्तं ।।24641 अण्णं वा एवमादी, अवि पडिमासु वि तिलोग महियाणं । जति भणति, कीस कीरति मल्लालंकारमादीयं ।।2465 । जो वि पडिरूव विणयो तं सव्व अवितहं अक्कूवंता। वंदण-थुइ-मादीयं, तित्थगरासायणा एसा ॥24661
अर्थात्-तीर्थंकर, प्रवचन श्रुत, आचार्य, महधिक गणधर, उनकी अभिनिवेषः के वश होकर बार-बार आशातना करने वाला आचार्य [अथवा गृहस्थ] पारांचित, प्रायश्चित का भागी होता है । इसी प्रकार अन्य आशातनाएँ करता हुआ और त्रिलोक पूजनीय तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का प्रतिरूप विनय न करना या विपरीत बातें करना जसे वन्दन न करे, स्तुति न करे। पुष्पमाला अलंकार आदि पूजा की अवहेलना करे इत्यादि यह तीर्थंकर की आशातना है इस प्रकार तीर्थंकरों की आशातना करने वाला पारांचित प्रायश्चित का भागी बनता है।
प्रतः शास्त्रकार फरमाते हैं किविहिणा उ कीरमाणा, सव्वच्चिय फलवति भवति चेट्ठा । इह लोइआ किं पुण, जिणपूया उभय लोगहिया ।।2।। काले सुइ-भूएणं विसिट्ठ पुप्फाइएहिं विहिणा उ।
सार थुइ-थुत्त गुरुई, जिनपूया होइ कायव्वा ।।3।।
अर्थात्-विधि से की जाने वाली सभी चेष्ठाएं फलवती होती हैं। इस लोक संबन्धी प्रवृत्तियाँ भी फलवती होती हैं तब जिनपूजा उभयलोक का हित करने वाली है इस का तो कहना ही क्या ? अतः पूजा के समय में पवित्र होकर विशिष्ट सुगन्धित पष्पादि से विधि पूर्वक और सार स्तुति स्तोत्रों से गुर्वी जिनः पूजा करनी चाहिए । (आचार्य हरिभद्रीय पूजा पंचाशक)
दिगम्बर मत को प्राचीन पूजापद्धति हम लिखे आये हैं कि दिगम्बरों में भी अनेक पंथ है। इन में से बीसपंथी - तेरहपंथी दोनों जिनप्रतिमा को उपास्य मानकर उसकी जलादि द्रव्यों से पूजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org