Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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94 अर्थ-प्रम को क्षीरसागर के जल से स्नान कराकर देदीप्यमान आभरणों (आभूषणों-अलंकारों) से विभूषित किया।
9-श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा पर लगा रत्न-द्रव्यसंग्रह की वृत्ति में लिखा है"माया ब्रह्मचारिणा पार्श्व भट्टारक-प्रतिमा-लग्न-रत्न-हरणं कृतमिति । अर्थ-कपटी ब्रह्मचारी ने श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर लगा रत्न चरा लिया। 10-जिनप्रतिमा पर चन्दन का विलेपन-भावसंग्रह में लिखा है किचंदण -सुगन्ध-लेओ जिण वर-चलणेसु कुणइ ।
जो भविओ। लहइ तणु विक्किरियं सुहावस-सुअंधयं विमलं ।।
अर्थ--जो भव्यजीव जिनेश्वर प्रभु के चरणों में सुगन्धित चन्दन से विलेपन करता है। वह स्वाभाविक सुगन्धसहित देवगति में निर्मल बैंक्रियशरीर प्राप्त करता है ।
11-जिनप्रतिमा की जलादि अष्टद्रव्यों से पूजा-लघुअभिषेकपाठ में लिखा है
आभिः पुण्याभिरद्भिः परिमल-बहुले नामुना चंदनेन । श्री दक्येयरमिभिः शुचि-सदक चयैरुदगमैरेभिरुदधः ।। हृद्य रेभि:निवेद्य मख-भवनमिमैर्दीपदद्भिः प्रदीपं :
धूपं: प्रयोभिरेभिः पृथुभिरपि कलैरेभिरीशंयजामि ॥11॥
अर्थ–में 1-इस पवित्र जल से 2-इस बहुत सुगंधित चन्दन से 3-लक्ष्मी के नेत्रों को सुखकर और पवित्र इन अक्षतों (चावलों) से, 4-उत्तम सुगन्धवाले इन पष्पों से, 5-उत्तम नैवेद्यो (मिष्ठानों) से, 6-भवनों को प्रकाशित करने वाले इन दीपकों से, 7-सुगन्ध से परिपूर्ण धूपों से और बड़े उत्तम फलों से श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा करता हूँ।
___12-जिनप्रतिमा की सचित फूलों से पूजा-दिगम्बरों की अनेक आचार्यों द्वारा रचित सब पूजापद्धतियों में सचित पुष्पो-फूलों से पूजा के विधान हैं। यहां मात्र दो प्रमाण काफी है सिद्धचक्र पूजा में वनस्पतिपरक सचित पुष्प पूजा
मन्दार-कून्द-कमलादि वनस्पतीनां ।
पुष्पर्यजेशुभतमैव सिद्धचक्रम् ।।6।। (ज्ञानपीठ पुष्पांजलि पु० 70 71),
अर्थ ---मैं शुभ तप के लिए श्रेष्ठ मंदार, कुन्द और कमलादि सचित वनस्पति के फूलों से श्रेष्ठ सिद्धचक्र की पूजा करता हूँ। .
जात्यादि-सत्प ष्प-माल्तिकाभिः श्री मल्लिकाभिर्भव-ताप-नुत्ये ।
व्रतानि सत्य-प्रभृतानि हर्षाद् गुप्तीर्य जामः सुमितीश्च पंच । (प.०290) ॐ ही अहिंसा महाव्रतादिकांगेभ्यो नैवेद्य निर्वापीमीति स्वाहा ।
अर्थ-चमेली और मालती आदि सगन्धित श्रेष्ठ पुष्पों से संसार ताप को दूर करने केलिए हम सत्यादि पांच महाव्रत, तीन गुप्ति और पांच समितियों की हर्ष पूर्वक पूजा करते हैं । ॐ ह्री' अहिंसा महाव्रतादि पूजा के लिए में पुष्प अर्पित करता हूँ। (सम्यकचरित्र पूजा-ज्ञानपीठ पूजांजली प.०१)
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