Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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89 समावेश है। तीसरी भाव पूजा है। इस प्रकार प्रभु की मुख्य रूप से द्रव्य और भाव से पजा दो प्रकार से की जाती है। तथा पंचोपचारी, अष्टोपचारी, सर्वोपचारी प जाओं की अपेक्षा से भी तीन प्रकार की कही है। इनमें से श्रावक अपने सामर्थ्य-शक्ति तथा समय की अनुकूलता के अनुसार कोई एक पूजा प्रतिदिन अवश्य करें।
(8) सब पूजापद्धतियों में तीर्थंकर के पांचों कल्याणकों की पूजा का समावेश।
1-स्नात्र पूजा में चौदह महास्वप्नों के उच्चारण तथा शक्रस्तव से च्यवन (गर्भ) कल्याणक पूजा। 2-स्तान विलेपन, राखी, दीप, दर्पण, पंखे आदि से जन्म कल्याणक की पूजा 3-स्नान, सुगन्धि, विलेपन, कुण्डल, मुकुट, मालाओं आदि से अनेक प्रकार के अलंकारों से सुसज्जित करके आंगी आदि की रचना तथा प्रभु की रथयात्रा से जन्म कल्याणक और दीक्षा कल्याणक पूजा यानी दीक्षा निष्क्रमण समय प्रमु चक्रवर्ती के वेश में तथा जन्म के समय इन्द्रों द्वारा मेरूपर्वत पर किये गये अभिषेक, वस्त्र, अलंकारों पुष्पों, पुष्पहारों आदि से की गई पजा । दीक्षा लेने पर इन्द्र द्वारा दिया गया प्रभु के वाम कन्धे पर देवदूश्य से वस्त्र पूजा। दीक्षा कल्याणक के वरघोड़े के समय धूप घटिकाएँ, शंख, धडियाल, वाजिन, इन्द्र ध्वजा आदि द्वारा पूजा दीक्षा कल्याणक प जा 4-केवलज्ञान कल्याणक में-आठ प्रतिहार्य-यथा-अशोक वृक्ष, पांचवर्ण के सचित सुगन्धित पुष्पवृष्टि, चामर, भामंडल, स्वर्ण रत्न जडित सिंहासन, देवदुंदभि वाजित्र, छत्रत्रय से पूजा। समवसरणरूप जिनमन्दिर में प्रभु प्रतिमा की प्रतिष्ठा, ध्वजा, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा । केवलज्ञान के बाद विहार के समय इन्द्र ध्वजा, धर्मचक्र, अष्टमंगल प्रम के आगे चलते हैं तथा विहार में प्रम के चलने के लिए धरती पर देवताओं द्वारा नौ स्वर्णकमलों की रचना से केवली पूजा।
इस प्रकार (1) स्नात्र पूजा-च्यवन (गर्भावतरण) तथा जन्म कल्याणक की पूजा। (2) स्नान, सुगन्धित द्रव्यों से प्रभु के शरीर पर विलेपन मुकुट कुण्डल आदि अलंकार तथा आंगी एवं रथयात्रा धूप-दीप, शंख घोडयाल पुष्पवृष्टि, पूष्पहार इन्द्रध्वजा आदि सब दीक्षा लेने के निष्क्रमण समय की पूजा सामग्री है (3) दीक्षा लेने पर वस्त्र पजा का देवद ष्य से समावेश दीक्षा कल्याणक पूजा में है।
___ तथा (4) आठ प्रतिहार्य नैवेद्य, पुष्पपूजा, स्वर्ण आदि पुष्पों से पूजा का समावेश द्रव्य पूजा में हो जाता है।
(5)-निर्वाण कल्याणक-के बाद तीर्थंकर शरीर रहित हो जाते हैं इसलिए उनके शरीर सम्बन्धी पूजा का प्रयोजन नहीं रहता अतः इस अवस्था की अपने उत्कृष्ट भावों से प्रभु की स्तुति, स्तवन, चैत्यवन्दन, नृत्य गान आदि द्वारा पूजा का समावेश
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यह सारी सामग्री सर्वोपचारी पूजा पद्धति में विस्तार पूर्वक आ जाती है ।
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