Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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18. श्री नन्दी सूत्र में विशाला नगरी में मुनिसुव्रतस्वामी तीर्थ कर का महाप्रभावी थुभ (स्तूप) कहा है । ___19. श्री अनुयोगद्वार सूत्र में स्थापना माननी कही है।
:0-श्री आवश्यक सूत्र में भरत चक्रवर्ती के (अष्टापद पर्वत पर) जिन मन्दिर बनवाने का वर्णन है।।
21- इसी सूत्र में बग्गुर श्रावक के श्री मल्लिनाथ (19 वें तीर्थ कर) का मन्दिर बनवाने का वर्णन है। .
22-इसी सूत्र में कहा है कि -सिंधु सौवीर के राजा उदायन की पट्टरानी चेटक राजा की पुत्री, भगवान महावीन की (भामा की पुत्री) बहन प्रभावती श्राविका ने अपने राज-महल में जिनमन्दिर बनवाकर श्री महावीर प्रभु को जीवितस्वामी (गृहस्थावस्था में ध्यानमुद्रा में) की मूर्ति स्थापित की थी और वह उसकी प्रतिदिन पूजा करती थी।
23-इसी सूत्र में कहा है कि फूलों से जिनप्रतिमा को पुजने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
24-इसी सूत्र में कहा है कि श्रेणिक राजा प्रतिदिन 108 सोने के यवों से जिनप्रतिमा का पूजन करता था ।
25-इसी सूत्र में कहा है कि साधु कायोत्सर्ग में जिनप्रतिमा पूजने का अनुमोदन करे।
26-इसी सूत्र में कहा है कि सर्वलोक में जिनप्रतिमाएं हैं। उनकी आराधना के निमित्त साधु और श्रावक कायोत्सर्ग करे ।
27-श्री व्यवहार सूत्र के प्रथम उद्देशे में जिनप्रतिमा के सामने आलोचना करना कहा है।
28---श्री महाकल्पसूत्र में कहा है कि यदि श्री जिनमन्दिर में साधु श्रावक दर्शन करने को न जावें तो प्रायश्चित आवे।
29-श्री महानिशीथ सूत्र में कहा है कि श्रावक यदि जिनमन्दिर बनवाएं तो उत्कृष्ठा बारहवें देवलोक तक जावे।
30- श्री जीतकल्पसूत्र में कहा है कि यदि जिनमन्दिर में साधु-साध्वी दर्शन करने न जावे तो प्रायश्चित आये ।
31- श्री प्रथमानुयोग में कहा है कि अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने श्री जिनमन्दिर बनवाये और उनकी पूजा की।
अतः राजाओं, महाराजाओं, चक्रवतियों, रानियों, महा-रानियों, अविरति सम्यग्दष्टि देवताओं-देवियों, इन्द्रानियों-इन्द्रों, देशविरति श्रावक-श्राविकाओं, पांच महाव्रतधारी साधु-सध्वियों, जंघाचारण-विद्याचारण आदि लब्धिधारी मुनियों, गणधरों
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