Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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समवसरण में अरिहंत स्वयं पूर्व दिशा सन्मुख विराजते हैं और दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तीन दिशाओं में उनके तीन प्रतिबिम्ब (जिनमूर्तियां) इन्द्रादि देवता विराजमान करते हैं । यहाँ आनेवाले श्रोतागण जैसे साक्षात् तीर्थ कर को वन्दन करते हैं वैसे ही उन प्रतिमाओं को भी वन्दन करते हैं । (देखें चित्र पृष्ठ । पर)।
4. श्री भगवती सूत्र में कहा है कि जंघाचारण, विद्याचारण मुनि मन्दीश्वर द्वीप की, मानुषोत्तर पर्वत की तथा यहाँ की शाश्वती जिनप्रतिमाओं को वन्दन करते हैं। (इस का उल्लेख मूलपाठ के साथ पहले भी कर आये हैं)।
5. श्री भगवती सूत्र में तुगिया नगरी के श्रावकों द्वारा जिनप्रतिमा पुजने का अधिकार है।
6. श्री ज्ञाताधर्म कथांग सत्र में श्राविका द्रोपदी (पांडव राजा की पुत्रवधु) ने जिनप्रतिमा की सत्तरहभेदी पूजा की, पश्चात् नमस्कार रूप नमुत्थ णं का पाठ पढ़ने का भी वर्णन है।
7. श्री उपासकदशांग सुत्र में प्रानन्द मादि दस धावकों का जिनप्रतिमा को बन्दन पूजन करने का अधिकार है। मात्र इतना ही नहीं पर आनन्द श्रावक का अन्य मतावलम्बियों द्वारा ग्रहण की हुई जिनप्रतिमा को बन्दन न करने का विवरण भी मिलता है।
8. श्री प्रश्नव्याकरण सुत्र में पांच महाव्रतधारी साधु द्वारा जिनप्रतिमा की चेयावच्च करने का वर्णन है।
9. श्री उववाई सुत्र में बहुत जिनमन्दिरों का अधिकार है । 10. इसो सुत्र में अम्बड़ श्रावक का जिनप्रतिमा पूजने का अधिकार है।
11. श्री रायपसेणीय सुत्र में सारथी तथा प्रदेशी राजा (इन दोनों) श्रावकों के जिनप्रतिमा पुजने का वर्णन है।
12~~इसी सुत्र में सुरियाभ देवता का जिनप्रतिमा के वन्दन-पूजन का वर्णन
13-श्री जीवाभिगम सत्र मे विजय आदि देवताओं के जिनप्रतिमा पूजने का वर्णन है।
14-श्री जम्बुदीपपण्णत्ति में यमक देवता आदि के जिनप्रतिमा पूजने आदि का बर्णन है।
15-श्री दशवकालिक सत्र की नियुक्ति में शयंभव सूरि का श्री शांतिनाथ की प्रतिभा को देखकर प्रतिबोध पाने का वर्णन है। .. 16-श्री उत्तराध्ययन सुत्र की नियुक्ति के दसवें अध्ययन में श्री गौतम स्वामी के अष्टापदतीर्थ की यात्रा का वर्णन है ।
17- इसी सूत्र में 29वें अध्ययन में थय थुई मंगल में स्थापना को वन्दनकरने का वर्णन है।
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