Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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पुष्करवरद्वीप के अन्त में स्थित मानुषोत्तर पर्वत समेत — पानी दो समुद्रों, ढाई द्वीपों तथा मानुषोत्तर पर्वत सब मिलकर पैंतालीस लाख योजन की लम्बाई चौड़ाई वाले क्षेत्र में ही मानव जन्म लेता और मरता है । इसलिए इसे ढाईद्वीप अथवा मनुष्यक्षेत्र कहा है । इसके बाहर मनुष्य के जन्म-मृत्यु नही होते । मानव जाति में से ही तीर्थ कर, सामान्य केवली, पांच महाव्रतधारी साधु-साध्वी होते हैं, इस लिये तीर्थंकरों का जन्म तथा निर्वाण भी मनुष्यक्षेत्र में ही होता हैं ।
नंदीश्वर द्वीप जो कि उपर्युक्त ढाई द्वीप के बाहर साढ़े चार द्वीप और पांच समुद्रों (कुल सात द्वीपों-सात समुद्रों) से आगे आठवां द्वीप है ।
1- यदि चंत्य शब्द का अर्थ-बगीचा किया जावे तो—जैन साधु नंदीश्वर - द्वीप में बाग-बगीचे को बन्दना करने क्यों जावेगे ? वन्दना तो पूज्यों को की जाती है। सिर झुकाया जाता है अपने पूज्यों को। बाग-बगीचे को न तो आज तक किसी ने पूज्य माना है और न आज भी पूज्य मानते है । अतः यहां चैत्य शब्द का अर्थ बाग-बगीचा सभव नहीं है । यदि यह समझा जाये कि नंदीश्वरद्वीप में चारण मनि बाग-बगीचे की सैर सपाटे के लिए जाते हैं तो यह भी सर्वथा असंभव है । क्योंकि जैन मुनियों का यह आचार ही नहीं है कि वहां सैर-सपाटे के लिये जावें ।
यहां पर चैत्य शब्द के विषय में बाग-बगीचे के अर्थ पर भी विचार कर लेना चाहिये । आगमों में जिस उद्यान में, जिस बाग-बगीचे में, जिस वनखंड में किसी न किसी देव की प्रतिमा और उसका मंदिर हो, उसी मूर्ति या मंदिर को लक्ष्य में रखते हुए उस उद्यान, बाग-बगीचे अथवा वनखंड को भी चैत्य कहा है । जैसे "गुण्णभद्द चेइए" श्रागम में ऐसा सूत्र पाठ है ।
जहाँ भगवान महावीर समवसरे थे उस वनखंड में पूर्णभद्र ( पुण्यभद्द ) नामका मंदिर था । यह यक्ष बड़ा प्रत्यक्ष और प्रसिद्ध था इस यक्ष की प्रसिद्धि के - कारण यह बाग भी पूर्णभद्र चैत्य के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। किसी निमित्त से भी किसी का नाम पड़ जाता है । यहाँ भी ऐसा ही हुआ है । जिस बाग, उद्यान, वन- खंड में यक्ष अथवा देवता का मंदिर नहीं है, उसे चैत्य के नाम से जैन शास्त्रों में कहीं भी वर्णन नहीं किया गया। वहां तो उद्यान शब्द का ही प्रयोग हुआ हैं ? जैन वाङ्मय में ऐसे उल्लेख भी मिलेंगे । परन्तु चैत्य शब्द देव अथवा यक्ष - के मंदिर के अभाव वाले उद्यान आदि में कहीं नहीं मिलेगा। इससे भी सिद्ध होता है कि उस यक्ष आदि की प्रतिमा को लक्ष्य में रखकर ही बाग वनखड आदि का नाम चैत्य हुआ है । इस की पुष्टि विदेशी विद्वान भी करते हैं ।
Such establishment consists if a park or a garden enclosing a tample and rows of cells for the accamodation of monks some thing also a stup or a sculpchral monoments. The whole complax is Un-usually called a chatya (Prof Hornel)
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