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8 स्वस्थ समाज का दिग्दर्शक ग्रन्थ -
Prof. (Dr.) Jayanti Lal Bhandari (D.Lit: Director, Acro Tolis Ins. of Research & Management, Indore
मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. ने पीएच.डी. उपाधि हेतु “जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व" विषय पर जो शोध अध्ययन किया है, वह जैन-दर्शन के आध्यात्मिक पक्ष के साथ जैन-दर्शन की जीवन-प्रबन्धन में व्यावहारिक उपयोगिता को भी प्रस्तुत करता है। वास्तव में अधिकांश लोग अभी यही समझते हैं कि जैन-दर्शन केवल धार्मिक क्रियाकलापों तक ही सीमित है, लेकिन इस शोध अध्ययन के बाद जैन धर्मावलम्बियों के साथ-साथ जैनेतर लोगों को भी यह महत्त्वपूर्ण बात मालूम होगी कि जैन-दर्शन जीवन जीने की कला, शिक्षा की जरूरतों, समयप्रबन्धन, शरीरप्रबन्धन, अभिव्यक्तिप्रबन्धन, मस्तिष्कप्रबन्धन, पर्यावरणप्रबन्धन, समाजप्रबन्धन एवं अर्थप्रबन्धन से भी जुड़ा हुआ
शोध-अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जैन-दर्शन न केवल एक धार्मिक एवं नैतिक इन्सान के निर्माण में मार्गदर्शन करता है, वरन् एक अच्छे परिवार, अच्छे समाज, अच्छे राष्ट्र और अच्छे विश्व के लिए भी मार्गदर्शन करता है। इस शोध-अध्ययन में प्रयुक्त प्राचीन एवं आधुनिक प्रामाणिक तथा प्रासंगिक सन्दर्भो से शोध का महत्त्व बढ़ गया है। इस शोध में श्वेताम्बर के साथ-साथ दिगम्बर ग्रन्थों का भी उपयोग हुआ है। साथ ही, ख्याति प्राप्त जैनदर्शनशास्त्री डॉ. सागरमल जैन के शोध-निदेशक होने से निश्चित ही मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. का शोध–अध्ययन जैन धर्म और दर्शन का महत्त्व देश और दुनिया में बढ़ाएगा।
हम आशा करें कि जिस तरह मुनिश्री ने पीएच.डी. के लिए शोध के माध्यम से जैन-दर्शन के अछूते, किन्तु उपयोगी आयामों को शिक्षा जगत् एवं समाज के सम्मुख किया है, उसी तरह वे अब
क समर्पित प्रयास करके इसी उपयोगी विषय को शोध क्षेत्र की उच्चतम डिग्री डी.लिट के लिए आगे बढ़ाएँ। निश्चित रूप से ऐसे उच्चतम शोध-अध्ययन की और अधिक उपयोगिता होगी और इससे जैन-दर्शन की प्रतिष्ठा और अधिक सुदृढ़ होती हुई दिखाई देगी।
अन्त में, यहाँ पर यह लिखा जाना उपयुक्त है कि मुनिश्री के शोध-अध्ययन पर आधारित पुस्तक जन-जन के लिए उपयोगी होगी।
सार
04 अगस्त, 2012
इन्दौर
डॉ. जयन्तीलाल भण्डारी
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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