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७४ हृदय के उद्गार
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किसी भी जीवन की सफलता अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष के सम्यक् पुरूषार्थ पर अवलम्बित होती है और पुरूषार्थ आधारित होता है आदर्श प्रबन्धन पर । यह प्रबन्धन जीवन के सर्व आयामों पर लागू होता है, चाहे वह प्रबन्धन शिक्षा का हो या समय, शरीर, अभिव्यक्ति, तनाव एवं मानसिक विकार, पर्यावरण, समाज, अर्थ, भोगोपभोग, धार्मिक-व्यवहार, आध्यात्मिक - विकास या अन्य किसी और विषय का ।
Dr. Gyan Jain (B.Tech., M.A., Ph.D.) Managing Director, Jainchem Pvt. Ltd., Chennai Editor, Khartara Vani (Jain Patrika), Chennai
यदि सुखाभास के लिए आवश्यकता है अर्थ और काम के पुरूषार्थ के प्रबन्धन की, तो शाश्वत् सुख के लिए तथा दुःख निवारण के लिए नितान्त जरूरत है धर्म और मोक्ष प्रबन्धन की । हमारी दुःखभरी समस्या यह है कि हमने जीवन मंच पर अर्थ और काम के प्रबन्धन को तो प्रोत्साहन दिया, धर्म और मोक्ष प्रबन्धन को सही मायनो में नगण्य कर दिया।
श्रद्धेय मुनिप्रवर श्री मनीषसागरजी का यह शोध - ग्रन्थ जीवन के प्रायः हर पहलू के विभिन्न पक्षों का गूढ़ विवेचन करते हुए यही दर्शाता है कि दर्शन, ज्ञान, चारित्र की सम्यक् समझ ही जीवन को राग, द्वेष और मोह से मुक्त कर, कषाय से रिक्त कर, विकार और विकृतियों से विमुख कर, आशातीत सिद्धशिला के पावन पवित्र आसन पर आरूढ़ करती है।
चैन्नई
10 अगस्त, 2012
पूजनीय गुरूभगवन्त प्रबुद्धता एवं प्रवीणता से हर विषय की विस्तृत समीक्षा की है और अन्ततोगत्वा यह सिद्ध करने में सफल हुए हैं कि जीवन - प्रबन्धन का लक्ष्य एक ओर क्षमा, मार्दव, आर्जव तथा सन्तोष की संवेदनाओं का प्रादुर्भाव है, तो दूसरी और आत्मवत् सर्वभूतेषू की वह समझ है, जो मैत्री, प्रमोद, करूणा और माध्यस्थ भावना को उजागर करती है एवं जिसके लिए विनय, विवेक के आधार पर सहिष्णुता का सम्यक् पाठ अनिवार्य है ।
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आज के उन्मार्ग वातावरण के लिए गुरूवर का यह सन्मार्ग प्रेरक शोध-ग्रन्थ हर एक पाठक के लिए प्रज्ञा का आलोक बन अनुप्रेक्षा, परिषह - जय और चारित्र परिणति का सशक्त हेतु बने, यही शुभाकांक्षा
जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
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डॉ. ज्ञान जैन
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