Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 19
________________ 8 बहुमूल्य कृति 80 जीवन एक अनुपम उपहार है। पर्यावरण दूसरा महत्त्वपूर्ण उपहार है। जीवन और पर्यावरण का सामंजस्य बना रहे, इस हेतु आवश्यक है कि हम जीवन को संयमित और अनुशासित रखते हुए प्रकृति से नजदीकी बनाये रखें, इसीलिए आवश्यकता है जीवन को प्रबन्धित करने की । हम अपना कॅरियर प्रबन्धित करते हैं; अर्थ, स्वास्थ्य, शरीर, शिक्षा, परिवार, रिश्ते-नाते आदि प्रबन्धित करते हैं, लेकिन मन, भाषा और स्व- आत्मा को प्रबन्धित करे बगैर हम सम्पूर्ण जीवन को प्रबन्धित करने की कल्पना नहीं कर सकते । प्रस्तुत पुस्तक में जीवन की समस्त विधाओं को प्रबन्धित कर सुन्दर एवं सफल जीवन जीने की कला अद्भुत शैली में व्यक्त की गई है । अध्यात्मप्रेमी मुनिराज श्री महेन्द्रसागरजी म.सा. के सुशिष्य स्वाध्यायप्रेमी युवामनीषी मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. ने जीवन- प्रबन्धन विषय को अपने शोधकार्य में शामिल कर जिनशासन को एक बहुमूल्य कृति प्रदान की है। उन्हें कोटिशः वन्दन । 20 सितम्बर, 2012 इन्दौर Prof. (Dr.) Virendra Nahar Director, Jain Darshan Vidya Sansthan, Indore Director, Jain Shwetambar Professional Acadamy, Indore जन-जन के लिए प्रेरक कृति 7 अगस्त, 2012 इन्दौर Jain Education International नाह “जैनआचारमीमांसा में जीवन - प्रबन्धन के तत्त्व" पुस्तक का अवलोकन कर अभिभूत हूँ । जीवन के हर पहलू पर गहन चिन्तन समाहित है। निश्चित रूप से जैन धर्म पूर्ण वैज्ञानिक होकर जीवन को मूल्यवान् बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। मेरी तो यह बलवती अभिलाषा है जैन-धर्म जन-धर्म बन जाए, तो विश्व वर्तमान व्याप्त दुर्दशा से मुक्त हो सकेगा । निश्चित रूप से पुस्तक की अमूल्य सामग्री जन-जन को प्रेरणा देगी । डॉ. वीरेन्द्र नाहर Prof. Bal Krishna Nilose Ex-Principal, Holkar Science College, Indore अभिनन्दन के स्वर For Personal & Private Use Only प्रो. बालकृष्ण निलोसे X1 www.jainelibrary.org

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