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8 एक अद्भुत ग्रन्थ... छ
Shri Gopal Swaroop Mathur
Senior Journalist, 'Naiduniya', Indore मुनिश्री मनीष सागरजी म.सा. द्वारा लिखित शोध ग्रन्थ “जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व" पढ़ने का अवसर मिला। जैन धर्म के समग्र व सूक्ष्म दर्शन के परिप्रेक्ष्य में जीवन-प्रबन्धन का यह शोध ग्रन्थ अद्भुत है। अनेक धर्म ग्रन्थों का सार व विद्वानों का उद्धरण इस ग्रन्थ के उद्देश्यों को सफल बनाता है। मुनिश्री का परिश्रम व लक्ष्य स्तुत्य है। मार्गदर्शक डॉ. सागरमल जैन का आशीर्वाद फलीभूत हो गया है। अनेक प्रणाम। ____09 अगस्त, 2012
अकिंचन 216, द्वारकापुरी, इन्दौर
गोपाल स्वरूप माथुर
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8 अन्त:स्फुरित स्वरावली... "
Dr. Prakash Bangani (MBBS, FAAOS - USA)
Consultant & Managing Director
Arihant Hospital & Research Centre, Indore Ex-Associate Prof. of Orthopaedic Surgery, Virginia Uni., USA
मनीषी मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. ने पीएच.डी. की उपाधि हेतु 'जैनआचारमीमांसा में जीवन प्रबन्धन के तत्त्व' विषय पर जो शोध अध्ययन किया है, वह जैन धर्म के धार्मिक पक्ष के अलावा शान्तिमय जीवन जीने की कला का मार्गदर्शन भी करता है। आज के भौतिक युग में जहाँ मानव अराजकता, अशान्ति एवं उद्वेगता में जी रहा है, कौन मानव शान्ति एवं आनन्द में जीना नहीं चाहेगा?
इस शोध-ग्रन्थ में शान्तिमय जीवन जीने के लिए जो आवश्यक है, वैसे हर पहलू, जैसे - शिक्षा, समय, अर्थ, पर्यावरण, समाज प्रबन्धन आदि का सरल एवं सरस भाषा में विवेचन जैन-शास्त्रों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है और यह विश्वशान्ति के लिए एक प्रशस्त उपाय है।
मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. इस अध्ययन को पुस्तक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, यह निश्चय ही पाठक को शान्तिमय जीवन की राह पर ले जायेगा। इस प्रयास के लिए मुनिश्री एवं मार्गदर्शक डॉ. सागरमलजी जैन को शत-शत वन्दन। 22 अक्टूबर, 2012 इन्दौर
डॉ. प्रकाश बांगानी
अभिनन्दन के स्वर
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