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38... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली आँतें, नाड़ी तंत्र, मेरूदण्ड, गुर्दे, पांव। द्वितीय
इस मुद्रा में दायीं हथेली को सामने की ओर अभिमुख कर कनिष्ठिका अंगुली को ऊपर उठायें, शेष अंगुलियों को कनिष्ठिका से 90° कोण पर रखें तथा अंगूठे को तीनो अंगुलियों के मध्य में स्पर्श करता हुआ रखने पर चतुर मुद्रा का दूसरा रूप बनता है ।
चतुर मुद्रा-2
चक्र
मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें।
8. चिन् मुद्रा
हिन्दू परम्परा में प्रचलित यह मुद्रा चिन वृक्ष से सम्बन्धित हो सकती है जो सदाबहार एवं हिमालय पर बहुलता में पाये जाते हैं
लाभ