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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......177 निर्वाण मुद्रा अपने नाम के अनुसार फलदायी है।
योग तत्त्व मुद्रा विज्ञान की यौगिक परम्परा में यह मुद्रा श्रद्धालु भक्तों द्वारा की जाती है। यह गायत्री जाप संबंधी मुद्राओं में से सबसे अन्तिम मुद्रा है। यह संयुक्त मुद्रा रोग से मुक्त होने के लिए प्रभावशाली मानी गयी है। विधि ____बायीं हथेली बायीं तरफ और दायीं हथेली दायीं तरफ रहें, अंगुलियाँ और अंगूठे आकाश की तरफ उठे हुए एवं थोड़े से झुके हए रहें, दोनों हाथ कलाई पर क्रोस करते हुए निकट लाए जाएं, इस तरह निर्वाण मुद्रा बनती है।33_ ___ यह मुद्रा नमस्कार मुद्रा के समान हैं किन्तु इसमें अंगूठे आगे होते हैं। लाभ
चक्र- विशुद्धि एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्रविशुद्ध एवं ज्योति केन्द्र ग्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- कान, नाक, गला, मुंह, स्वर यंत्र, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।
गायत्री पूजन में प्रयुक्त उपरोक्त 32 मुद्राएँ तांत्रिक एवं आध्यात्मिक साधना में विशेष महत्त्व रखती है। भारतीय ऋषियों ने आंतरिक कल्याण के लिए इसे जितना महत्त्वपूर्ण माना है, बाह्य विकास में भी यह उतनी ही सहयोगी है। ये मुद्राएँ विभिन्न चक्रों, केन्द्रों एवं ग्रन्थियों आदि को प्रभावित करते हुए शारीरिक एवं मानसिक संतुलन स्थापित करती हैं। इस मुद्रा वर्णन के माध्यम से प्रत्येक आराधक दैहिक स्वस्थता, वैचारिक ऊर्ध्वता चारित्रिक सम्पन्नता को प्राप्त करते हुए सर्वोच्च आत्मिक स्वरूप को प्राप्त करें यही प्रयास किया है। सन्दर्भ-सूची 1. समुखं संपुटं चैव, विततं विस्तृतं तथा । द्विमुखं त्रिमुखं चैव, चतुः पंचमुखं तथा ॥
षण्मुखाधोमुखं चैव, व्यापकांजलिकं तथा ।
शकटं यमपाशं च, प्रथितं संमुखोन्मुखम् ।। बिलंबं मुष्टिकं चैव, मत्स्यं कूर्म वराहकम् । सिंहाक्रांतं महाक्रांतं, मुद्गर पल्लवं तथा ।