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244... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में 4. मृगी मुद्रा
__ अंगूठा, मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों को परस्पर संयुक्त कर शेष अंगुलियों को ऊर्ध्व प्रसरित करने पर मृग मुद्रा बनती है।
शक्ति एवं पुष्टि कर्म से सम्बन्धित होम में इस मुद्रा का प्रयोग श्रेष्ठ फल देता है।
मृगी मुद्रा
सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व केन्द्रतैजस एवं दर्शन केन्द्र अन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, निचला मस्तिष्क एवं आँखें।