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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......305 विधि
दायीं हथेली में फूल की डंडियों को पकड़े हुए रखना कूर्म मुद्रा है।41 लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दै।
हिन्दू एवं बौद्ध दोनों ही परम्पराओं का मुख्य ध्येय आन्तरिक शुद्ध अवस्था की प्राप्ति है। दोनों में ही देवी-देवताओं एवं महापुरुषों को आदर्श मानकर उनकी पूजा की जाती है। पूजोपचार में उपयोगी इन मुद्राओं का स्वरूप वर्णन उच्च आदर्शों को हमारे आचरण में लाने हेतु सहयोगी बने तथा हमें आदर्श स्वरूप तक पहुचाएँ इसी में इन मुद्राओं के साधना की सार्थकता है। सन्दर्भ-सूची 1. हिन्दी शब्द सागर, भा.1, पृ. 279 2. (क) EDS पृ. 111
(ख) MJS पृ. 1 3. MJS पृ. 4 4. (क) AKG पृ. 20
(ख) GDE पृ. 140 5. (क) ERG II पृ. 25
(ख) MJS पृ. 10
(ग) RSG पृ. 63 6. MJS पृ. 11 7. (क) AKG पृ. 20
(ख) BCO पृ. 20
(ग) RSG पृ. 3 8. BBh पृ. 189 9. MGS पृ. 35