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280... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
यह हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा में समान रूप से धारण की जाती है। यह मुद्रा शाश्वत प्रेम की प्रतीक है।
विधि
दायीं हथेली को बाहर की तरफ करते हुए एवं अंगूठा और अनामिका के अग्रभागों को आगे की तरफ करते हुए स्पर्श करवायें, तर्जनी और मध्यमा को हल्की सी पृथक करते हुए उर्ध्व दिशा में फैलायें तथा कनिष्ठिका को किंचित झुकाने पर मयूर मुद्रा बनती है। 15
मयूर मुद्रा
लाभ
चक्र- विशुद्धि एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व - वायु एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - विशुद्धि एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे ।