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258... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में 5. सर्वाकर्षिणी मुद्रा
मध्यमातर्जनीभ्यांतु, कनिष्ठा नामिके समे। अंकुशाकार रूपाभ्यां, मध्यमे परमेश्वरी ।।
इय माकर्षिणी मुद्रा, त्रैलोक्याकर्षणे क्षमा ।। कनिष्ठिका, अनामिका, मध्यमा और तर्जनी को समान रूप से रखते हुए मध्यमा को अंकुशाकार बनाना, सर्वाकर्षिणी मुद्रा है।
त्रैलोक्य को आकर्षित करने वाली यह महत्त्वपूर्ण मुद्रा है। इस मुद्रा का प्रयोग स्वतंत्र रूप से एवं मन्त्रों के साथ भी किया जा सकता है। मन्त्र जाप के अवसर पर यह मुद्रा करने से मंत्र सिद्ध होता है तथा उसके बिना भी इसका प्रयोग आकर्षण एवं मोहन उत्पन्न करता है। 6. छोटिका मुद्रा
अंगुष्ठ तर्जनी स्फोटं छोटिका मुद्रिका मता ।
छोटिका मुद्रा सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व केन्द्रतैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि विशेष