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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...249 सुपरिणाम
चक्र- अनाहत, सहस्रार एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- वायु, आकाश एवं पृथ्वी तत्त्व केन्द्र- आनंद, ज्ञान एवं शक्ति केन्द्र ग्रन्थि- थायमस, पिनियल एवं प्रजनन ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली, ऊपरी मस्तिष्क, आँख, मेरुदण्ड, गुर्दे। 9. अस्त्र मुद्रा ____ फेंककर चलाये जाने वाला हथियार, जैसे तीर अस्त्र कहलाता है। यज्ञहवन आदि के वक्त अस्त्र मुद्रा का उपयोग आसुरी शक्तियों के निवारण एवं निम्न कोटि के देवी-देवताओं को भयभीत करने के उद्देश्य से किया जाता है। ___'शुभ कार्यों में विघ्न आते हैं' ऐसा पूर्वाचार्यों का कथन हैं तथा 'मिथ्यात्वी देवता विघ्न संतोषी होते हैं। यह भी शास्त्रोक्त है। इस मुद्रा के द्वारा दृढ़ संकल्प पूर्वक अमंगल का परिहार किया जाता है।
यज्ञादि कार्यों के लिए उपयुक्त आसन में बैठ जाएँ। फिर दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा से बाएँ हाथ की हथेली पर शब्दयुक्त आघात करना अस्त्र मुद्रा है।