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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ
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5. हंसी मुद्रा
कनिष्ठिका को सभी अंगुलियों से अलग रखने पर हंसी मुद्रा बनती है। शान्ति एवं पुष्टि कर्म से सम्बन्धित होम कर्म में इस मुद्रा का प्रयोग उत्तम फलदायक माना गया है।
हंसी मुद्रा
सुपरिणाम
चक्र- • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व केन्द्रतैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग एवं गुर्दे ।