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176... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में दें, बायें हाथ को ऊपर (बाहर) की तरफ रखें और दायें अंगूठे को आकाश की ओर ऊर्ध्वस्थित करने से लिंग मुद्रा बनती है।32
यह मुद्रा छाती के स्तर पर धारण की जाती है। लाभ
चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व केन्द्रशक्ति एवं ज्योति केन्द्र ग्रन्थि- प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र। 32. निर्वाण मुद्रा
निर्वाण शब्द समाप्ति, शांति, मुक्ति, मोक्ष आदि अर्थों का वाचक है। यहाँ निर्वाण का मुख्य अभिप्राय मोक्ष प्राप्ति है। प्रत्येक जीव का लक्ष्य अंततोगत्वा मोक्षगमन ही है।
इस मुद्रा के द्वारा व्यक्ति निर्वाण पद की कामना करता है अथवा इष्ट तत्त्व को निर्वाण स्वरूपी मानता हुआ स्वयं के लिए उसकी याचना करता है।
निर्वाण मुद्रा