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अध्याय-5 पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की
प्रयोग विधियाँ
हिन्दू उपासना में अंगन्यास, पूजा, होम आदि क्रियाओं को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। कुछ क्रियाएँ शारीरिक रक्षा कवच के रूप में की जाती है तो कुछ क्रियाएँ आन्तरिक उन्नति के लिए। इन सभी का एक मुख्य भाग होता है मुद्रा प्रयोग। प्रस्तुत अध्याय में पूजा-उपासना से सम्बन्धित कुछ मुद्राएँ प्रामाणिक सन्दर्भ के साथ एवं कुछेक अर्वाचीन संकलित पुस्तकों के आधार पर उल्लिखित की जा रही है। हिन्दू उपासना पद्धति में इन मुद्राओं का प्रयोग लगभग होता ही है।
षडंग न्यास सम्बन्धी मुद्राएँ षट् चक्रों को जागृत करने हेतु की जाने वाली एक तान्त्रिक क्रिया, न्यास कहलाती है। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में निर्धारित अंगुलियों का स्पर्श करते हुए भिन्न-भिन्न देवताओं का ध्यान एवं तद्योग्य मन्त्रों का स्मरण करना अंगन्यास मुद्रा है। __ पूजा आदि मांगलिक कार्यों में आसुरी शक्तियों द्वारा उपद्रव होने की पूर्ण संभावना रहती हैं जिससे शरीर के अवयव भी क्षत-विक्षत हो सकते हैं। करन्यास मुद्राओं के द्वारा उपद्रवों का निवारण किया जाता है। इस प्रक्रिया में छह मुद्राएँ बताई गई हैं और इन मुद्राओं का हिन्दू एवं बौद्ध दोनों परम्पराओं में समान स्थान हैं। 1. हृदयाय मुद्रा
यह मुद्रा हृदय को पवित्र करने के उद्देश्य से की जाती है अत: हृदयाय मुद्रा कहलाती है।
दायें हाथ को हृदय के मध्य रखकर "एँ हृदयाय नमः' मन्त्र का