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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... ...175
31. लिंग मुद्रा
सामान्य तौर पर जिससे किसी वस्तु की पहचान हो उसे लिंग कहते हैं। वेदान्त दर्शन के अनुसार सूक्ष्म शरीर, ईश्वर का प्रतीक चिह्न लिंग कहलाता है।
चित्रानुसार लिंग मुद्रा ईश्वर शक्ति सम्पन्न स्व-स्वरूप की प्रतीति एवं पौरुषत्व की अनुभूति करने का प्रतीक है।
चित्रांकित अंगूठा शिवलिंग का सूचन करता है। एक अपेक्षा से यह मुद्रा लिंग मुक्त होने के अभिप्राय से भी की जा सकती है।
यौगिक परम्परा में लिंग मुद्रा दोनों हाथों से जाप साधना के पश्चात की जाती है। यह मुद्रा सर्दी, जुकाम, बलगम आदि से राहत पाने के लिए अधिक उपयोगी है।
लिंग मुद्रा विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के अभिमुख करते हुए परस्पर संयुक्त कर दें, फिर सभी अंगुलियों को एक-दूसरे में गूंथकर हथेली के पृष्ठ भाग की तरफ जाने