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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
अस्त्र मुद्रा
32. चक्र मुद्रा
विधि
लाभ
चक्र - मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क |
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हस्तावूर्ध्वमुखौ कृत्वा, तले संयोज्य मध्यमे । अनामायां तु वामायां, दक्षिणां तु विनिक्षिपेत् ।। तर्जन्यौ पृष्ठतौ लग्ना, वंगुष्ठौ चक्रमुद्रा भवेदेषा, नृहरेस्सन्निधौ
तर्जनीश्रितौ ।
मता ।।
वही,
पृ. 467
दोनों हथेलियों को अधोमुख करके हथेली के तलस्थान पर मध्यमा को जोड़ें, फिर दाहिनी अनामिका को बायीं अनामिका से जोड़ें, फिर दोनों तर्जनियों