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हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
यह मुद्रा दिखाकर भक्त भी इष्ट के प्रति सर्वात्मना अर्पित होता है। दूसरी दृष्टि से यह अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है कि हम आपकी कृपा से सकुशल हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार यह विष्णु के सिंह अवतार की सूचक है।
यह मुद्रा गायत्री जाप की आवश्यक मुद्राओं में से एक है और इसे रोग निवृत्ति में मुख्य माना है।
विधि
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कन्धों के दोनों ओर एक - एक हाथ को स्थिर करें, अंगुलियाँ ऊपर (आकाश की तरफ) उठी हुई, हल्की सी झुकी हुई रहें, हथेलियों का भाग सामने की ओर रहे, इस तरह अभय मुद्रा के समान सिंहक्रान्त मुद्रा बनती है। 22
लाभ
• सिंह मुद्रा करने से आकाश तत्त्व संतुलित होता है। इससे भावधारा निर्मल होती है और निःस्वार्थ भावों का निर्माण होता है।
• यह मुद्रा विशुद्धि चक्र एवं आज्ञा चक्र को जागृत कर शरीर के तापमान और कैल्शियम का संतुलन करके शक्ति उत्पादन का कार्य करती है। इसी के साथ शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास करते हुए बुद्धि एवं चित्त को शांत, तीव्र एवं एकाग्र बनाती है।
• यह मुद्रा विशुद्धि केन्द्र एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित करती है। जिससे काम, क्रोध आदि कषायों का नियंत्रण होता है और जीवन उदात्त एवं निर्मल बनता है।
एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार इससे हिचकी, स्नायुओं का ऐंठन, सुस्ती आदि दूर होती है। यह मुद्रा कैल्शियम, फास्फोरस आदि का संतुलन भी करती है। इस मुद्रा की निरंतर साधना साधक को बुद्धिशाली, लेखक, कवि, वैज्ञानिक, तत्त्वज्ञ आदि बनाती है।
22. महाक्रान्तम् मुद्रा
यह मुद्रा नाम महा + क्रान्त इन दो शब्दों से निर्मित है।
महा शब्द अत्यंतता एवं गाय सूचक है। अभिप्रायतः आत्मा के अनन्त गुणों से आबद्ध पुरुष महाक्रान्त कहलाता है। इस मुद्रा के द्वारा आराध्य की महिमा को व्यक्त किया जाता है। यह मुद्रा भक्ति या गुणगान से सम्बन्धित है। भक्ति योग के वक्त दोनों हाथों की स्थिति स्वयमेव चित्रानुसार बन जाती है।