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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......137
विस्तृत मुद्रा
और अंगूठों को एक साथ फैलाते हुए शिथिल एवं अन्दर की तरफ झुकाते हुए रखने पर विस्तृत मुद्रा बनती है। लाभ - • विस्तृत मुद्रा जल एवं अग्नि तत्त्व को प्रभावित करती हुई पित्त से उभरने वाली बीमारियों को उपशान्त तथा मूत्र दोष का परिहार करती है।
• स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए स्वशक्तियों का विकास करती है। इससे उदर सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है।
• इसके प्रयोग से बैचेनी, पेडु का कैन्सर, कब्ज एवं एओरटिक वाल्व के कार्य को सुचारु रूप से करने में एवं अन्य रोगों को दूर करने में सहयोग मिलता है। इससे जिह्वा पर सरस्वती का वास होता है।