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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......135
लाभ
• सम्पुट मुद्रा करने से शरीर में आकाश तत्त्व संतुलित रहता है।
• यह मुद्रा आज्ञा चक्र को प्रभावित करती है। जिससे बुद्धि कुशाग्र तथा पिच्युटरी एवं पिनियल ग्रंथियों का स्राव संतुलित होने से स्वभाव शांत एवं क्रोधादि कषाय नियंत्रित होते हैं।
• एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार यह मुद्रा पीलिया, हाथों में कम्पन, कान के लिम्फ स्राव, मुँह में दुर्गंध आदि रोगों के निदान में लाभकारी है। इसी के साथ यह शिराओं एवं धमनियों के उपचार में भी सहयोगी है। इसके द्वारा व्यक्ति आन्तरिक जगत की ओर अभिमुख होता है। 3. वितत मुद्रा ___वितत अर्थात फैला हुआ। वीणा अथवा उससे मिलता-जुलता अन्य वाद्य
भी वितत कहलाता है, परन्तु निम्न चित्र में दोनों हाथ फैले हुए होने से यहाँ प्रसरित अर्थ इष्ट है। इस मुद्रा में दोनों हाथ नीचे की तरफ फैले हुए हैं अतः इसे वितत मुद्रा कहते हैं।
वितत मुद्रा