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लाभ
गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... 155
चक्र
मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व केन्द्रतैजस एवं आनंद केन्द्र ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण तंत्र, नाड़ी संस्थान आदि ।
17. मुष्टिक मुद्रा
मुष्टिक का सीधा सा अर्थ होता है मुट्ठी । इस मुद्रा में दोनों हाथ मुट्ठी के रूप में बांधे जाते हैं इसलिए इसे मुष्टिक मुद्रा कहते हैं । यह मुद्रा दृढ़ संकल्प की सूचक है।
इस मुद्रा के माध्यम से संकल्पित कार्य के प्रति आत्म सजगता को बढ़ाया जाता है।
यौगिक परम्परा में यह मुद्रा श्रद्धालु आराधकों द्वारा धारण की जाती है। यह गायत्री जाप में प्रयुक्त 24 मुद्राओं में से एक है। इसे कैन्सर सदृश बीमारियों में भी लाभकारी बतलाया है। यह मुद्रा पद्ममुष्टि मुद्रा की भाँति दोनों हाथों से की जाती है।
मुष्टिक मुद्रा