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106... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
करे करं करयोस्तिर्यक्, संयोज्य चांगुलीः ।
संहताः प्रसृताः कुर्यान्, मुद्रेयं परशोर्मता ।। दोनों हथेलियों को तिरछा रखें, फिर अंगुलियों को सम्मिलित कर हाथों को इस प्रकार चलायें जैसे कुल्हाड़ी चला रहे हो, उसे परशु मुद्रा कहते हैं।68
परशु मुद्रा
लाभ
चक्र- आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिपीयूष, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, स्वर तंत्र, नाक, कान, गला एवं मुँह। 38. मृग मुद्रा (द्वितीय)
यह मुद्रा हिरण के मुखाकृति की सूचक है। इस मुद्रा के द्वारा मृग के असली स्वरूप को दर्शाने का उपक्रम किया जाता है।