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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......107 विधि
मिलित्वानामिकांगुष्ठ, मध्यमाअाणि योजयेत् ।
शिष्टांगुल्युच्छ्रिते कुर्यान्, मृगमुद्रेयमीरिता ।। अंगूठा, मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों को परस्पर में संयुक्त कर, . शेष दोनों अंगुलियों को सीधा रखने पर मृग मुद्रा बनती है।69 39. अभय मुद्रा __इस मुद्रा को देखकर भयभीत व्यक्ति निर्भीक अवस्था को प्राप्त कर लेता है अत: इसका नाम अभय मुद्रा है।।
भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, भगवान कृष्ण आदि महापुरुष हर समय अभय स्थिति में रहते थे। यही कारण है कि उनके आश्रय में आने वाली पापीपामर, क्रूर हिंसक जैसी आत्माओं का भी उद्धार हो गया। श्रेष्ठ साधक की समुपलब्धि हेतु यह मुद्रा अत्यन्त लाभकारी है। विधि
ऊर्वीकृतो वामहस्तः, प्रसृतोऽभयमुद्रिका ।
अभय मुद्रा