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112... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
अंजलि को अंजलि से सम्मिलित करने पर वासुदेव मुद्रा बनती है। 8. लिंग मुद्रा
उच्छ्रितं दक्षिणांगुष्ठं, वामांगुष्ठेन बन्धयेत् । वामांगुलीदक्षिणाभिरंगुलीभिश्च वेष्टयेत् । लिंगमुद्रेयमाख्याता, शिवसान्निध्यकारिणी ।।
वही पृ. 464
देखिये, शारदातिलक 18/13 की टीका 9. विघ्न मुद्रा
तर्जनीमध्यमासन्धि निर्गतांगुष्ठ मुद्रिका । अधोमुखी दीर्घरूप, मध्यमा विनमुद्रिका ।।
देखिये, शारदातिलक 13/4 की टीका 10. योनि मुद्रा
मिथः कनिष्ठिके बध्वा, तर्जनीभ्यामनामिके । अनामिकोर्ध्वगष्लिष्ट, दीर्घ- मध्यमयोरयः ।। अंगुष्ठानद्वयं न्यस्येद्योनि- मुद्रेयमीरिता ।
वही पृ. 464
देखिये, शारदातिलक 4/49 की टीका 11. जानु मुद्रा यह मुद्रा अपने नाम के अनुसार घुटनों से सम्बन्धित होनी चाहिए। कमलाकृतिमुद्रा तु जानुमुद्रेति कीर्तिता ।।
वही, पृ. 464 कमल के समान आकृति वाली मुद्रा जानु मुद्रा कहलाती है। 12. नारसिंही मुद्रा
जानुमध्ये गतौ कृत्वा, चिबुकोष्ठौ समावृतौ । हस्तौ तु भूमिसंलग्नौ, कम्पमानः पुनः पुनः । मुखं च विकृतं कुर्यात्, लेलिहानां च जिह्वाकाम् । एषा मुद्रा नारसिंही, प्रधानेति प्रकीर्तिता ।
वही, पृ. 464 देखिये, शारदातिलक 16/7 की टीका