________________
50... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
बायें हाथ को मुट्ठि रूप में बांधकर अंगूठे को मध्यमा और अनामिका के बीच प्रविष्ट करवाने (घुसाने) पर कश्यप मुद्रा बनती है।21
यह कपित्थ मुद्रा के समान है।
कश्यप मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँख। 18. कटि मुद्रा
शरीर में पेट और पीठ के नीचे का भाग कटि कहलाता है। प्रस्तुत मुद्रा में हाथ को कटि भाग पर रखा जाता है इसलिए यह कटि मुद्रा कहलाती है।
यह मुद्रा हिन्दू परम्परा में अधिक प्रचलित है। विद्वानों के अनुसार यह